आयुर्वेद के अच्छे दिन आ रहे हैं
'आयुर्वेद के अच्छे दिन आ रहे हैं' शीर्षक कुछ राजनीतिक लगता है, मगर यहाँ मेरा उद्देश्य राजनीतिक नहीें ।
किसी भी चिकित्सा पद्धति के अस्तित्व के लिए राज्य-आश्रय आवश्यक होता है।
परन्तु, उस चिकित्सा पद्धति के विकास के लिए तो समाज-आश्रय का होना अनिवार्य है।
आयुर्वेद के अच्छे दिन आने की बात पर हर किसी को लगने लगता है कि मोदी जी की सरकार आयुर्वेद को प्रचारित, प्रसारित करने की जी तोड़ कोशिश कर रही है व करेगी।
यह सच है। मोदी जी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार में ऐसा ही हो रहा है।
मगर, केवल सरकार की वैसाखी के आधार पर ही आयुर्वेद का विकास होगा? क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीें?
मैं मानता हूँ कि सरकार के आश्रय व सिफारिश पर हुआ आयुर्वेद का विकास टिकाऊ नहीें हो सकता।
टिकाऊपन तो तब आएगा जब समाज आयुर्वेद की ओर स्वयं आकर्षित होगा।
गत 35 वर्षों में पहली बार मुझे ऐसा विचित्र संयोग दिखा है जबकि सरकार आयुर्वेद को प्रोत्साहित करने में जी जान से जुटी है तथा जब समाज भी आयुर्वेद की ओर आकर्षित हो रहा है।
सरकार का आयुर्वेद के प्रति स्नेह तो माननीय प्रधानमन्त्री श्री की आयुर्वेद के प्रति अगाध श्रद्धा से है।
मगर, समाज क्यों कर आयुर्वेद के प्रति आकर्षित हो रहा है?
क्या हम वैद्यों ने कुछ अभूतपूर्व कारनामें कर दिखाए हैं?
जी नहीें । ऐसा कुछ नहीें । हम वही करते आ रहे हैं जो करते चले आ रहे थे। हाँ, कुछेक क्षेत्रों महत्वपूर्ण कार्य भी हुआ है ।
मगर, समाज हमारे उस लेशमात्र के महत्वपूर्ण कार्य से ही आयुर्वेद के प्रति आकर्षित हो रहा है, ऐसा नहीें । कारण कुछ और हैं, जो कदाचित् अधिक महत्वपूर्ण हैं -
1. अपने सीमित, संकुचित, व परम भौतिकवाद पर आधारित सिद्धांतों पर चलते-चलते आज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान एक बन्द गली में आ पहुंचा है जहाँ उसे नए द्वारों व मार्गो की परमावश्यकता है;
2. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की औषधियों का रोगों को मिटाने के बजाय दबाना, औषधियों के घातक कुप्रभाव, व मंहगी परीक्षा-विधियाँ समाज को चिकित्सा की अन्य पद्धतियों की ओर ताकने के लिए मजबूर कर रहीं हैं;
3. अज्ञानता अथवा मजबूरी में अपनाई गई जीवनशैली से उत्पन्न रोगों का स्थायी समाधान चाहिए जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास नहीें है;
4. कीटाणुओं (Bacteria) पर ऐण्टी-बायटिक औषधियों का कम होता प्रभाव व बढ़ता रज़िस्टन्स; व
5. दिनोंदिन बढ़ती वायरल इंफेक्शन्ज़ जिनकी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास कोई सन्तोषजनक औषधियाँ नहीें हैं।
ये तथा अन्य अनेकों कारण हैं जिनके आधार पर आज का समाज आयुर्वेद से यथोचित समाधानों की अपेक्षा करते हुए आयुर्वेद की ओर आकर्षित हो रहा है ।
यह सब हमें अपनी व आयुर्वेद की वर्तमान युग में सार्थकता सिद्ध करने का अभूतपूर्व अवसर प्रदान कर रहा है।
यदि हम कुछ सार्थक योगदान दे पाते हैं तो अवश्य ही आयुर्वेद के अच्छे दिन आ जाएँगे ।
वरना, न तो सरकारें किसी की सगी होतीं हैं और न समाज ही।
डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com
परन्तु, उस चिकित्सा पद्धति के विकास के लिए तो समाज-आश्रय का होना अनिवार्य है।
आयुर्वेद के अच्छे दिन आने की बात पर हर किसी को लगने लगता है कि मोदी जी की सरकार आयुर्वेद को प्रचारित, प्रसारित करने की जी तोड़ कोशिश कर रही है व करेगी।
यह सच है। मोदी जी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार में ऐसा ही हो रहा है।
मगर, केवल सरकार की वैसाखी के आधार पर ही आयुर्वेद का विकास होगा? क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीें?
मैं मानता हूँ कि सरकार के आश्रय व सिफारिश पर हुआ आयुर्वेद का विकास टिकाऊ नहीें हो सकता।
टिकाऊपन तो तब आएगा जब समाज आयुर्वेद की ओर स्वयं आकर्षित होगा।
गत 35 वर्षों में पहली बार मुझे ऐसा विचित्र संयोग दिखा है जबकि सरकार आयुर्वेद को प्रोत्साहित करने में जी जान से जुटी है तथा जब समाज भी आयुर्वेद की ओर आकर्षित हो रहा है।
सरकार का आयुर्वेद के प्रति स्नेह तो माननीय प्रधानमन्त्री श्री की आयुर्वेद के प्रति अगाध श्रद्धा से है।
मगर, समाज क्यों कर आयुर्वेद के प्रति आकर्षित हो रहा है?
क्या हम वैद्यों ने कुछ अभूतपूर्व कारनामें कर दिखाए हैं?
जी नहीें । ऐसा कुछ नहीें । हम वही करते आ रहे हैं जो करते चले आ रहे थे। हाँ, कुछेक क्षेत्रों महत्वपूर्ण कार्य भी हुआ है ।
मगर, समाज हमारे उस लेशमात्र के महत्वपूर्ण कार्य से ही आयुर्वेद के प्रति आकर्षित हो रहा है, ऐसा नहीें । कारण कुछ और हैं, जो कदाचित् अधिक महत्वपूर्ण हैं -
1. अपने सीमित, संकुचित, व परम भौतिकवाद पर आधारित सिद्धांतों पर चलते-चलते आज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान एक बन्द गली में आ पहुंचा है जहाँ उसे नए द्वारों व मार्गो की परमावश्यकता है;
2. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की औषधियों का रोगों को मिटाने के बजाय दबाना, औषधियों के घातक कुप्रभाव, व मंहगी परीक्षा-विधियाँ समाज को चिकित्सा की अन्य पद्धतियों की ओर ताकने के लिए मजबूर कर रहीं हैं;
3. अज्ञानता अथवा मजबूरी में अपनाई गई जीवनशैली से उत्पन्न रोगों का स्थायी समाधान चाहिए जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास नहीें है;
4. कीटाणुओं (Bacteria) पर ऐण्टी-बायटिक औषधियों का कम होता प्रभाव व बढ़ता रज़िस्टन्स; व
5. दिनोंदिन बढ़ती वायरल इंफेक्शन्ज़ जिनकी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास कोई सन्तोषजनक औषधियाँ नहीें हैं।
ये तथा अन्य अनेकों कारण हैं जिनके आधार पर आज का समाज आयुर्वेद से यथोचित समाधानों की अपेक्षा करते हुए आयुर्वेद की ओर आकर्षित हो रहा है ।
यह सब हमें अपनी व आयुर्वेद की वर्तमान युग में सार्थकता सिद्ध करने का अभूतपूर्व अवसर प्रदान कर रहा है।
यदि हम कुछ सार्थक योगदान दे पाते हैं तो अवश्य ही आयुर्वेद के अच्छे दिन आ जाएँगे ।
वरना, न तो सरकारें किसी की सगी होतीं हैं और न समाज ही।
डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
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