Saturday, January 9, 2021

 https://youtu.be/82fhdXEzHzU

Dr.Vasishth's
Ayurvedic Management of Viral Infection

विषम-ज्वर (विषाणुजन्य) का आयुर्वैदिक उपचार

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Dr. Brijbala Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa)
Dr. Sunil Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa), PhD (Hridroga)

Various viral infections have been becoming too prevalent over the outgoing several decades, resulting in a lot of morbidity and mortality. 

We can manage different viral infections on the basis of the management of visham jvara (विषम-ज्वर). We find following ayurvedic management of prevalent viral infections, quite effective - 

 I. Inhibit the replication of viruses by antiviral drugs:
Several drugs used in the managment of visham-jvara (विषम-ज्वर), have been reported to act by inhibiting the replication of viruses (विषाणुहर) and boosting the immunity (ओजःवर्धनम्). The most effective drugs in this group include - 
• Kalmegh, Bhallatak, Dugdhika (Antivir Tablet);
• Bhumi-amalaki (Phylocil Tablet)

II. Boost the immunity by immune-boosting drugs:
Several rasayana and ojo-vardhak drugs used to enhance the bala (रोग-प्रतिरोधक क्षमता), used in the managment of oja-kshaya (ओजःक्षयः), have been reported to act by boosting the immunity (ओजःवर्धनम्) and/or modulating the immunity (आमविषहरम्). The most effective drugs in this group include - 
• Ashwagandha, Guduchi, Tulasi, Pippali, Yashad (Imunie Tablet);
• Shilajatu, Amalaki, Abhrak, Muktashukti, Svarnamakshik, Yashad (Minovit Tablet)

III. Manage the associated abnormalities:
The disease producing viruses can result in several pathologies that need to be managed for saving the life of the patient, preventing further progression of the disease processes, and offering relief in the troubles occurring to the patient. These include - 

1. Inflammation (शोथ):

The underlying inflammation though a defensive process by the body needs to be managed at times, especially if it endangers the life of the patient or becomes too troublesome. Several effective anti-inflammatory drugs include - 
• Shallaki, Erandmula, Jatiphal (Loswel Tablet);
• Guggulu, Bhallatak, Chitrak (Revplaq Tablet);
• Ashwagandha, Shilajatu, Dugdhika, Gandira (Cartogen Tablet);
• Haridra, Guduchi, Dashmula, Rasna

2. Pain (वेदना):
The associated pain, too, is a defensive mechanism by the body. Yet, when too troublesome, pain needs to be relieved. Several effective analgesic drugs include - 
• Jatiphal, Vatsanabh, Godanti (Dolid Tablet);
• Tagar, Parsika-yavani, Rakta-marich, Jatiphal (Dealco Tablet);
• Pippalimula, Asthi-shrinkhala, Guggulu, Shallaki 

3. Breathlessness (श्वासकष्ट):
 In case the lungs are involved, especially if the patient develops bronchial inflammation / constriction, and pneumonia, need for to support the respiratory function may arise. Some the effective drugs used to relieve the broncho-constriction, include - 
• Antamul, Dugdhika, Ark, Gandira (Asthex Tablet);
• Shati, Madhuyashti (Lergex Tablet);
• Pushkarmula, Bharangi, Vasa, Kantakari 

IV. General Management: 
The general condition of the patient has to be managed by proper nutrition, fluid replenishment, rest, and moral support.

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Monday, January 4, 2021

Dr.Vasishth's Ayurvedic Management of APD (अम्लपित्त)

Dr.Vasishth's
अम्लपित्त/परिणामशूल का आयुर्वैदिक उपचार
Ayurvedic Management of Acid Peptic Diseases
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Dr. Brijbala Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa)
Dr. Sunil Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa), PhD (Hridroga)

अम्लपित्त रोग की चिकित्सा करते समय सबसे पहले यह जानना ज़रूरी होता है कि यह किन कारणों से पैदा हुआ है। कारणों का पता चलने पर यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि - रोगी की देह (विशेषकर आमाशय) में विकृति क्या है, कहाँ है, व कितनी है ? और, इसके बाद प्रयास किया जाना चाहिए, सम्प्राप्ति बनाने का ।

कारण (Causes):
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• अक्सर देखा जाता है कि अम्लपित्त का रोगी लम्बे समय तक, तथा/अथवा, अधिक मात्रा में ऐसे भोजन करने का आदी होता है, जो कि तीक्ष्ण, उष्ण, व क्षोभकारक हों;
• या फिर, रोगी लम्बे समय तक, तथा/अथवा, अधिक मात्रा में तीक्ष्ण, उष्ण, व क्षोभकारक (ऐलोपैथिक) दवाओं का सेवन करता होता है;
• कभी-कभी अम्लपित्त का हेतु दूषित / बासी भोजन, असमय भोजन, उचित रूप से न चबाया गया भोजन, ज़ल्दी-ज़ल्दी किया गया भोजन भी हो सकते हैं; तथा
• और, कभी आमाशय में होने वाला संक्रमण (H. pylori) भी अम्लपित्त व उससे होने वाले आमाशयिक व्रण (Peptic ulcer) का हेतु बनता है।

सम्प्राप्ति (Pathogenesis):
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ऊपर बताए कारणों का कुल प्रभाव निम्न में से एक अथवा अधिक प्रकार से पड़ता है - 

I. आमाशय में  बनने वाले पाचक-पित्त में अम्ल-घटक (Hcl) अधिक बनने लगता है;
II. आमाशयगत श्लेषम-कला (Gastric mucosa) व उसे आच्छादित करने वाली श्लेष्मा (Mucosal barrier) में क्षीणता व दौर्बल्य हो सकता है, जिससे कि आमाशयगत श्लेषम-कला-शोथ (Gastritis) व आम-पच्यमानाशय व्रण (Peptic ulcer) हो सकता है;
III. आमाशय की अनुलोम-गति (Peristaltic movement) में कुछ धीमापन भी हो सकता है, जिससे कि सेवित आहार व पाचक-रस आमाशय में आवश्यकता से अधिक देर तक पडे रहने से आहार-रस में अम्लता (Hyperacidity) व शुक्तता (Fermentation) पैदा होती है; व
IV. आमाशय में आवश्यकता से अधिक अम्ल (Hyperacidity) की विद्यमानता हो सकती है।

उपचार (Management):
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अब समय आता है, ऊपर बताए कारणों व सम्प्राप्ति के आधार पर चिकित्सा करने का। इसके लिए निम्न रीति से आगे बढ़ा जा सकता है-  
 
I. पाचक-पित्त में अम्ल-घटक (Hcl) की उत्पत्ति कम करने वाली औषधियों का प्रयोग:
सबसे पहला व महत्वपूर्ण कदम होता है, पाचक-पित्त में अम्ल-घटक (Hcl) की उत्पत्ति कम करने वाली उचित औषधियों का चुनाव (Selection of right drugs) व उनका प्रभावी मात्रा (Therapeutic dose) में प्रयोग। इस वर्ग में हालांकि अनेकों औषधियाँ हैं - शटी, पटोल, धत्तूर्, वासा, गुडूची, यवानी इत्यादि; तो भी सर्वाधिक प्रभावशाली औषधी है - शटी (Hedychium spicatum) ।  

शटी के तिक्त (Antagonistic to acid) व कषाय रस (Astringent), तथा ग्राही (Anti-secretory) कर्म इसे आमाशयिक पाचक-पित्तगत अत्यधिक अम्लता (Excessive gastric Hcl) की उत्पत्ति को कम करने वाली एक प्रभावशाली औषधी बनाते हैं ।  इसकी तीक्ष्णता, लघुता, अनुष्णता, व ईषत् कटुता इसके उपरोक्त कर्मों में अतिरिक्त बल प्रदान करते हैं। अपने इन्हीं गुण-कर्मों के आधार पर शटी का भरपूर चिकित्स्कीय उपयोग न केवल अम्लपित्त (Hyperacidity) व परिणामशूल (APD), बल्कि छर्दि (Vomiting) व हिक्का (Hiccup) में भी किया जाता है। इसके व्रणरोपण (Ulcer healing) व शोथहर (Anti-inflammatory) कर्मों के आधार पर इसका आमाशय-शोथ (Gastritis) व परिणामशूल (APD), व आम-पच्यमानाशयगत व्रण (Peptic ulcer) की चिकित्सा में विशेष महत्व है।

II. आमाशयगत श्लेषम-कला (Gastric mucosal barrier) को बल देने वाली औषधियों का प्रयोग:
अम्लपित्त की चिकित्सा में दूसरा महत्वपूर्ण कदम होता है, ऐसी औषधियों का उपयोग जो आमाशयगत श्लेषम-कला (Gastric mucosal barrier) को बल देने वाली हों।  इस वर्ग में हालांकि अनेकों औषधियाँ हैं - मधुयष्टी, आमलकी, शतावरी, गुडूची, अभ्रक, ज़हरमोहरा इत्यादि; तो भी इनमें सर्वाधिक प्रभावशाली औषधी है - मधुयष्टी (Glycyrrhiza glabra) ।  

मधुयष्टी के शीत (Anti-enzymatic) व मधुर रस (Antacid) इसे आमाशयगत श्लेषम-कला (Gastric mucosal barrier) को बल देने वाली विशेष औषधी बनाते हैं ।  दूसरी ओर, इसकी गुरुता (Anabolic action) व स्निग्धता (Promotes mucous secretion)  इसे एक श्रेष्ठ रसायन बनाने के साथ-साथ एक प्रभावशाली व्रणरोपक औषधी भी बनाते हैं ।  यही कारण है कि जहाँ एक ओर सर्वांग धातुक्षय (General debility / tissue degeneration) की अवस्था में मधुयष्टी का रसायन के रूप में भूरिशः उपयोग किया जाता है, वहीं व्रण (Wound / ulcer) में एकदेशीय (Local) धातुक्षय (Tissue death / necrosis) की अवस्था में भी मधुयष्टी का व्रणरोपक औषधी के रूप में बहुतायत से उपयोग होता है। अपने इन्हीं गुण-कर्मों के आधार पर मधुयष्टी का उपयोग न केवल अम्लपित्त (Hyperacidity) व परिणामशूल (APD), बल्कि छर्दि (Vomiting),  आमाशय-शोथ (Gastritis), व आम-पच्यमानाशयगत व्रण (Peptic ulcer) की चिकित्सा में भरपूर उपयोग किया जाता है ।

III. आमाशय की अनुलोम-गति (Peristaltic movement) बढ़ाने वाली औषधियों का उपयोगः
इस विकृति के निराकरण के लिए ऐसी औषधियों के उपयोग की आवश्यकता होती है जो कि आमाशय की अनुलोम-गति को तीव्र करते (Stimulate peristalsis) हुए उसमें मौजूद पच्यमान-आहार व आहार-रस (Gastric contents) को शीघ्रता से पच्यमानाशय ( Duodenum) में प्रविष्ट कराएँ (Expedite gastric emptying)। इस वर्ग में यद्यपि अनेकों औषधियाँ हैं - भृंगराज, शटी, मयूरपिच्छ, हरीतकी, निशोथ, पौदीनक, शुण्ठी इत्यादि; तो भी भृंगराज (Eclipta alba) इन सब में अपना विशेष महत्व रखती है ।   

भृंगराज के कटु (Stimulant) व  तिक्त (Acid antagonistic) रस इसे आमाशय की अनुलोमगति बढ़ाने वाली (Peristaltic stimulant) वाली विशेष औषधी बनाते हैं ।  दूसरी ओर, इसकी लघुता व उष्णता (Metabolic stimulant action) तथा रूक्षता (Anti-secretory) इसके उपरोक्त कर्मों में विशेष सहायता (Synergistic action) प्रदान करते हैं।  यही कारण है कि भृंगराज का उपयोग अम्लपित्त (APD) के साथ-साथ छर्दि (Vomiting) में भी किया जाता है। यही नहीं, भृंगराज अग्न्याशयगत पाचक-तत्व (Pacreatic trypsin) का अवरोध करते हुए अग्न्याशय-शोथ (Pancretitis) में भी लाभकारी सिद्ध होता है। 

IV. आमाशयगत अत्यधिक अम्ल का निराकरण करने वाली (Acid neutralizing) औषधियों का उपयोगः
इस विकृति के निवारण के लिए ऐसी औषधियों के उपयोग की आवश्यकता होती है जो कि आमाशयगत अत्यधिक अम्ल का निराकरण (Neutralize excessive gastric Hcl) करें। इस वर्ग में मुख्य औषधियाँ हैं - मुक्ताशुक्ति, मुक्ता, प्रवाल, गुडूची, स्वर्जिकाक्षार, निम्बुक, अभ्रक इत्यादि । फिर भी, मुक्ताशुक्ति (Mother of pearl) कई कारणों से इस वर्ग की एक आदर्श औषधी है ।   

मुक्ताशुक्ति का अम्लता-निरोधक (Acid-neutralizing) कर्म इसे आमाशय में मौजूद अत्यधिक अम्लता-निवारण (Acid antagonism) करने के लिए एक आदर्श औषधी बनाता है। यही कारण है कि मुक्ताशुक्ति का उपयोग अम्लपित्त (APD) के साथ-साथ छर्दि (Vomiting), पित्त-प्रधान अरुचि (Dyspepsia), व पित्तज-परिणामशूल (Peptic ulcer) में भी किया जाता है। 

अम्लपित्त होने की स्थिति में, प्रत्येक रोगी में सम्प्राप्ति के आधार पर, उपरोक्त चारों वर्गों में से किसी एक अथवा अनेक औषधियों का युक्तपूर्वक प्रयोग अपेक्षित लाभ देता है। 

अनुभव बताता है कि, क्योंकि अम्लपित्त के प्रत्येक रोगी में, सम्प्राप्ति के लगभग सभी घटक, कमोबेश रहते ही हैं, अतः उपरोक्त चारों वर्गों में से एक-एक मुख्य औषधी का चुनाव करके, उनका युक्तिसंगत मात्रा व कल्पना में उपयोग, इस रोग की चिकित्सा में आशातीत लाभ देता है।  

इसी आधार पर हमने, प्रत्येक वर्ग में से एक-एक मुख्य औषधी का चुनाव करके, चार मुख्य औषधियों का औषध-योग तैयार किया, तथा इसका अम्लपित्त (Hyperacidity), परिणामशूल (Acid Peptic Diseases), आम-पच्यमानाशयगत व्रण (Peptic ulcer), अजीर्ण (Dyspepsia), छर्दि (Vomiting), आमाशय-कला-शोथ (Gastritis) इत्यादि में, असंख्य रोगियों में, लगभग तीन दशक तक सफलतापूर्वक प्रयोग किया, व इससे आशातीत लाभ पाया।

इस औषध-योग को हमने लोसिड टैबलॅट (LOCID Tablet) नाम दिया है, जिसमें निम्न घटक हैं -
• शटी इक्स्ट्रैक्ट 250 mg (1.25 ग्राम शटी चूर्ण के बराबर)
• मधुयष्टी इक्स्ट्रैक्ट 225 mg (1.12 ग्राम मधुयष्टी चूर्ण के बराबर)
• भृंगराज इक्स्ट्रैक्ट 175 mg (875 मि. ग्राम भृंगराज चूर्ण के बराबर)
• मुक्ताशुक्ति भस्म  150 mg

मात्रा: 1-2 टैबलेट, भोजन के तत्काल बाद, दिन में तीन बार 
निर्देश: अम्लपित्त (Hyperacidity), परिणामशूल (Acid Peptic Diseases), आम-पच्यमानाशयगत व्रण (Peptic ulcer), अजीर्ण (Dyspepsia), छर्दि (Vomiting), आमाशय-कला-शोथ (Gastritis), अग्न्याशय-शोथ (Pancreatitis), कामला (Hepatitis)

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Wednesday, December 30, 2020

AYURVEDIC MANAGEMENT OF ALLERGIC BRONCHITIS & ASTHMA

 Dr.Vasishth's
Ayurvedic Management of Allergic Bronchitis & Asthma
असात्म्यता-जन्य कास व श्वास का आयुर्वैदिक उपचार

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Dr. Brijbala Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa)
Dr. Sunil Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa), PhD (Hridroga)

कास (Bronchitis) व श्वास (Asthma) यद्यपि अनेकों कारणों से हो सकते हैं, तथापि असात्म्यता/अनूर्जता (Allergy) इन रोगों का एक मुख्य कारण है।  असात्म्यता-जन्य कास व श्वास (Allergic Bronchitis & Asthma) होने पर निम्न रीति से चिकित्सा की जा सकती है - 

I. असात्म्यताहर (Anti-allergic) औषधियों का प्रयोग करें:
असात्म्यता (Allergy) में मूलभूत विकृति (Underlying pathology) ओजस् (Immunity) का विस्रंस होता है। ऐसी स्थिति में, जब कोई हानिरहित वस्तु के शरीर में प्रवेश करती / सम्पर्क में आती है, तो ओजोवर्गीय भाव / वस्तुएँ (Immune cells) उसे हानिकारक मानते हुए, उस हानिरहित वस्तु को नष्ट करने के लिए, तीनों दोषों को अतिक्रियाशील / प्रकुपित (Hyperctive) कर देती है। इससे देह में अनेकों प्राकृत क्रियाओं की वृद्धि व विकृत क्रियाओं की उत्पत्ति हो कर, शरीर के धातुओं में विकृति होती है।  ऐसे में ओजस् के विस्रंस को दूर करने वाली औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।  इन्हीं औषधियों को असात्म्यताहर (Anti-allergic) औषधियाँ कहते हैं।  मुख्य असात्म्यताहर औषधियाँ हैं - 

• शटी, मधुयष्टी, ज़हरमोहरा, यशद (Lergex - लर्जैक्स टैबलॅट);
• शटी (Shati ext tab 600 mg, शट्यादि चूर्ण);
• मधुयष्टी (Madhuyashti ext tab 600 mg, यष्ट्यादि चूर्ण);
• हरिद्रा (Haridra ext tab 600 mg, हरिद्रा खण्ड);
• शिरीष (Shirish ext tab 600 mg, शिरीष क्वाथ);
• दुग्धिका (Dugdhika ext tab 600 mg)

II. श्वासनलिका-विस्फारक (Broncho-dilator) औषधियों का प्रयोग करें:
श्वासकष्ट (Dyspnea) होने पर श्वासनलिकाओं को विस्फारित करने वाली औषधियों का प्रयोग करना आवश्यक होता है, जिससे कि रोगी सरलता से श्वास ले सके। इसके लिए निम्न औषधियों व औषध-योगों का उपयोग किया जा सकता है - 

• अन्तमूल, दुग्धिका, अर्क, गण्डीर (Asthex - एॅस्थैक्स टैबलॅट);
• अन्तमूल (Antamul ext tab 600 mg);
• दुग्धिका (Dugdhika ext tab 600 mg);
• पुष्करमूल (Pushkarmula ext tab 600 mg);
• शटी (Shati ext tab 600 mg, शट्यादि चूर्ण);
• वासा (Vasa ext tab 600 mg, वासावलेह);
• भारंगी (Bharangi ext tab 600 mg, भारंग्यादि क्वाथ);
• कुष्ठ (Kushtha ext tab 600 mg); 
• धत्तूरा (कनकासव)

III. आमविषहर (Immuno-modulator) औषधियों का प्रयोग करें:
असात्म्यता (Allergy) में मूलभूत विकृति (Underlying pathology) ओजस् (Immunity) का विस्रंस होता है। ऐसी स्थिति में, दीर्घकालिक लाभ के लिए, ओजस् को साम्यावस्था में लाने के लिए आमविषहर व ओजःसाम्यक् (Immuno-modulator) औषधियों का प्रयोग आवश्यक होता है। मुख्य आमविषहर व ओजःसाम्यक् (Immuno-modulator) औषधियाँ हैं - 
• अश्वगन्धा, गुडूची, तुलसी, पिप्पली, यशद (Imunie - इम्यूनी टैबलॅट);
• भल्लातक, गुग्गुलु, चित्रक (Revplaq - रिवप्लाॅक टैबलॅट);
• भूम्यामलकी (Phylocil - फ़ाइलोसिल टैबलॅट / Livie - लिवी टैब्लॅट);
• अश्वगन्धा (Ashwagandha ext tab 600 mg, अश्वगन्धादि चूर्ण);
• गुडूची (Guduchi  ext tab 600 mg, संशमनी वटी); 
• तुलसी (Tulasi ext tab 600 mg); 
• कटुकी (Katuki (Tab 600 mg, आरोग्यवर्धिनी);
• हरीतकी (Haritaki ext tab 600 mg);
• शुण्ठी (Shunthi ext tab 600 mg, शुण्ठ्यादि चूर्ण);
• मधुयष्टी (Madhuyashti ext tab 600 mg, यष्ट्यादि चूर्ण);
• ताम्र (भस्म);
• मल्ल (शुद्ध, समीरपन्नग रस, मल्लसिन्दूर);
• मनःशिला (श्वासकुठार रस)

IV. कफनिस्सारक (Expectorant) औषधियों का प्रयोग करें:
असात्म्यज कास (Allergic bronchitis) व श्वास (Allergic asthma) होने पर श्वासनलिकाओं में मल-कफ/ष्ठीवन (Mucus) की उत्पत्ति बढ़ जाती है, जिसे पतला करके निकालने की आवश्यकता होती है। इसके लिए निम्न कफ/ष्ठीवन-निस्सारक औषधियों का उपयोग किया जा सकता है -

• मधुयष्टी (Madhuyashti ext tab 600 mg, यष्ट्यादि चूर्ण);
• वासा (Vasa ext tab 600 mg, वासावलेह);
• कण्टकारी (Kantakari ext tab 600 mg, कण्टकार्यावलेह, व्याघ्रीहरीतकी);
• हरिद्रा (Haridra ext tab 600 mg, हरिद्रा खण्ड);
• गोजिह्वा (Gojihva ext tab 600 mg, अर्क गोजिह्वा); 
• तालीसपत्र (Talispatra ext tab 600 mg, तालीशादि चूर्ण); 
• श्लेष्मातक (लऊक सपिस्ताँ);
• बनफ़्शा (बनफ़्शादि क्वाथ);
• टंकण (भस्म);
• जूफा (क्वाथ)

V. शोथहर (Anti-inflammatory) औषधियों का प्रयोग करें:
असात्म्यज कास (Allergic bronchitis) व श्वास (Allergic asthma) होने पर श्वासनलिकाओं की अन्तःकला (Mucous membrane) में शोथ (Inflammation) एक प्रधान विकृति होती है, जिसे कम करना आवश्यक होता है। इसके लिए निम्न शोथहर (Anti-inflammatory) औषधियों का प्रयोग किया जा सकता है -

• शल्लकी, एरण्डमूल, जातीफल (Loswel - लोस्वैल टैब्लॅट);
• शल्लकी (Shallaki ext tab 600 mg); 
• गुग्गुलु, भल्लातक, चित्रक (Revplaq - रिवप्लाॅक टैबलॅट);
• अश्वगन्धा (Ashwagandha ext tab 600 mg, अश्वगन्धादि चूर्ण);
• हरिद्रा (Haridra ext tab 600 mg, हरिद्रा खण्ड);
• शुण्ठी (Shunthi ext tab 600 mg, शुण्ठ्यादि चूर्ण);
• कर्चूर (Karchura ext tab 600 mg);
• रास्ना (Rasna ext tab 600 mg, रास्ना-सप्तक क्वाथ-घन टैब्लॅट 600 mg);
• दशमूल (दशमूल क्वाथ-घन टैब्लॅट 600 mg)

VI.  प्राणवह-स्रोतो-बल्य (Pulmonary tonics) औषधियों का प्रयोग करें:
असात्म्यज कास (Allergic bronchitis) व श्वास (Allergic asthma) होने का एक महत्वपूर्ण कारण प्राणवह-स्रोतस् में वैगुण्यता (स्रोतो-वैगुण्य / ख वैगुण्य -Poor pulmonary immunity) रहता है। दीर्घकालिक लाभ के लिए प्राणवह-स्रोतस् को बल देने वाली रसायन औषधियों का प्रयोग करना श्रेयस्कर रहता है।  इसके मुख्य रसायन औषधियाँ हैं - 

• शिलाजतु, आमलकी, अभ्रक, मुक्ताशुक्ति, स्वर्णमाक्षिक, यशद (Minovit - मिनोविट टैब्लॅट);
• अश्वगन्धा (Ashwagandha ext tab 600 mg, अश्वगन्धादि चूर्ण);
• सुवर्ण (भस्म, सुवर्ण-वसन्तमालती रस);
• तुलसी (Tulasi ext tab 600 mg);
• द्राक्षा (अवलेह / आसव)

नोट: अधिक जानकारी के लिए लिंक क्लिक करें व यूट्यूब विडियो देखें - 
https://youtu.be/33MZm-_8_O8

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Tuesday, December 29, 2020

Dr.Vasishth's
Ayurvedic Management of Mental Stress
मानसिक तनाव / चिन्ता का आयुर्वैदिक उपचार
Dr. Brijbala Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa)
Dr. Sunil Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa), PhD (Hridroga)

Mental stress results in many nagging troubles, like - 
• Unpleasant thoughts (कष्टदायक विचार);
• Worries (चिन्ता);• Tension (मानसिक दाब);
• Palpitation (हृद्-दरः);
• Weakness (दौर्बल्यः);
• Sweating (अतिस्वेद);
• Inability to concentrate (विक्षिप्त चित्त);
• Lack of drive (निरुत्साह);
• Forgetfulness (विस्मृति);
• Exhaustion (क्लम);
• Disturbed sleep (बाधित निद्रा);
• Irritation and agitation (मनःक्षोभ);
• Lack of confidence (हीन आत्मविश्वास);
• Lack of libido (मैथुन-अनिच्छा)

Following Ayurvedic Management of mental stress has been found to be quite effective - 

I. ANTI-STRESS DRUGS (मनोद्वेगहर औषधियाँ)
Following nootropic drugs used judiciously could be of immense help in managing mental stress - 
1. Brahmi (ब्राह्मी) - Brahmi vati, Brahmi ext tablet (600 mg), MENTOCALM tab;
2. Tagar (तगर) - Tagar ext tablet (600 mg), MENTOCALM tab;
3. Mandukparni (मण्डूकपर्णी) - MANDUKPARNI ext tablet (600 mg);
4. Shankhpushpi (शंखपुष्पी) - SHANKHPUSHPI ext tablet (600 mg);
5. Jatamansi (जटामांसी) - Mansyadi kvath, JATAMANSI ext tablet (600 mg);
6. Ashwagandha (अश्वगन्धा) - Ashwagandha churna, ASHWAGANDHA ext tablet (600 mg), HIGRO tab;
7. Parsika-yavani (पारसीक यवानी) - Parsika-yavani churna, DeALCO tab;
8. Kapikachhu (कपिकच्छु) - Kapikachhu churna, Kaunch pak, KAPIKACHHU ext tablet (600 mg); ELEVA tab, Higro tab;
9. Vacha (वचा) - ELEVA Tab;
10. Jatiphal (जातीफल) - Jatiphal churna, DeALCO tab.

II. NON-DRUG MEASURES (अनौषधीय चिकित्सा)
Following non-drugs measures used along with the above drugs could have added benefits in improving mental health - 

1. Manage your time: Lack of time management is the major underlying cause of mental stress in a great majority of people. Managing time in the best way possible, could ease a lot of their mental stress. You could leave unimportant jobs while prioritize the important ones to save time and energy. 

2. Have a healthy lifestyle: Adopting a healthy lifestyle makes you strong enough to bear the day-to-day stress. Eating healthy foods, regular exercise, enough sleep, and drinking enough water are simple but effective lifestyles to avoid mental stress. 

3. Do the work that you can:Take jobs that you can do without pushing yourself in physical or mental stress. Accepting and doing jobs beyond your capacity create stress and are thus well avoided. 

4. Sort out conflicts with others: Longstanding conflicts drain a lot of your physical and mental energy and leave you exhausted and stressed. Wherever and whenever possible, sort out your conflicts with others and make peace.

5. Accept the reality: Many of us prefer to seek solace in a make-believe world of our own and avoid coming to terms with the stark realities of life. While outwardly one may feign peace of mind, the fact is, we feel constantly stressed in such situations. Accepting the reality is the solution in such states.

6. Learn to relax: Constant work keeps you overly stressed - physically and mentally. Taking time out could be an effective way to recharge yourself with renewed energy and help you relax as well. So, learn to relax in between your work sessions. 

7. Stay relaxed in trying situations: We all have to pass through difficult situations in our lives. These could come all of a sudden without any warning. Instead of drifting into panic, it pays off to stay confident and relaxed, whenever you find yourself in difficult times. 

8. Try to see the humor around: Instead of being in ‘serious mode’ all the time, stay in a 'lighter mode'. It helps to lower the effect of every day stressors and reduce the stress hormones. So, try to see fun in most of the day-to-day events. 

9. Avoid stressful situations: Whenever possible try to avoid stressful situations. If it's not possible, then stay balanced and don't let the situation affect you too much. It could happen anywhere - home, work, marketplace, road, etc.

10. Be prepared for major changes: Changes are bound to happen. Take them positively. It could be in the form of a change in job, moving house, transfer to a new place, working with new people, changed government rules, etc.

11. Practice yoga: Regular yoga-asanas, pranayama, and meditation are effective in keeping the mental stress level at a lower level. 

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Monday, December 28, 2020

 Dr.Vasishth's

APPLIED AYURVEDIC MANAGEMENT OF FIBROMYALGIA

फ़ायब्रो-माइयल्जिया का व्यावहारिक आयुर्वैदिक उपचार

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Dr. Brijbala Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa)

Dr. Sunil Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa), PhD (Hridroga)

Fibromyalgia (मनोदैहिक सर्वांग-रुक्) is a chronic psycho-somatic disease characterized by generalised pain (सर्वांग-रुक्), allodynia (स्पर्श-असह्यता), and many other physical (दैहिक) and psychological (मानसिक) troubles.     


CAUSES (हेतवः)

Many factors seem to result in Fibromyalgia (मनोदैहिक सर्वांग-रुक्) – 

• Psychological factors (मनोहेतवः) – long-term mental stress, anxiety, depression

• Defective genes (बीजदुष्टि)

• Physical inactivity (अचेष्टा) – Poor or low physical activity

• Trauma (आघात) and post-traumatic stress (aghatottar mano-aghat) disorder

• Diseases (रोगाः) – obesity (स्थौल्यः), chronic fatigue syndrome (जीर्ण श्रम-क्लमः), IBS (क्षुब्धान्त्रः), depression (मनोअवसादः) 

• Poor sleep (हीन-निद्रा)

• Auto-immune process (आमविषः)


PATHO-PHYSIOLOGY (सम्प्राप्ति:)

Acting in a wide variety of mechanisms, the causative factors mentioned above, result in several abnormalities that ultimately result in Fibromyalgia (मनोदैहिक सर्वांग-रुक्). These include – 

1. Fibromyalgia (मनोदैहिक सर्वांग-रुक्) seems to originate from higher brain centers (प्राणवातः), hypothalamic pituitary axis (उदानवातः), and autonomic centers (व्यानवातः) resulting in dysfunction in the cognition, sensory, and motor fucntions. 

2. Dysfunction in the cognition (धी-धृति-स्मृति विभ्रंशः) affects the concentration, memory (स्मृतिह्रासः), speed of performance, ability to multi-task (बहु-क्रियाह्रासः).

3. Involvement of the sensory areas results in lowering the threshold for pain sensitivity decreases (50%), with the result that many stimuli well tolerated normally evoke pain response.

4. Involvement of the motor areas result in fatigue, weakness of the muscles of the limbs, generalized muscular weakness, muscular cramps / twitchings, and prolonged muscle spasm.


DIAGNOSIS (निदानः)

FM is diagnosed on the basis of the following symptoms - 

• Sensory dysfunction (ज्ञानेन्द्रिय-वैषम्यः) – generalized pain (सर्वांग वेदना), allodynia (स्पर्श-असह्यता), paresthesia (तोदः)

• Motor dysfunction (कर्मेन्दिय-वैषम्यः) – fatigue (श्रमः, क्लमः), prolonged muscle spasms (दीर्घ-मांसपेशी-आक्षेपः), muscle twitchings (मांस-धातु-स्फुरणं), limb  weakness (बाहु-सक्थि दौर्बल्यः)

• Cognitive dysfunction (धी-धृति-स्मृति विभ्रंशः) - 

impaired concentration / diminished attention span (विक्षिप्त चित्तः), poor memory (स्मृति-ह्रासः), impaired speed of performance (गति-शैथिल्यः), Inability to multi-task (बहु-क्रिया-ह्रासः)

• Disturbed sleep (बाधित-निद्रा) 

• Palpitation (हृद्-दरः), IBS (क्षुब्धान्त्र), genito-urinary symptoms (मूत्र / प्रजननांग-गत विकृति), low blood sugar (रक्त-माधुर्य-ह्रासः), rheumatoid arthritis (आमवातः), SLE (साम-वातरक्तः)


MANAGEMENT (उपचार:)

The management of fibromyalgia (मनोदैहिक सर्वांग-रुक्) needs a higly individualistic approach as per the underlying etio-pathology. Common used groups of drugs in this disease, include -


1. Medhya Drugs (मेध्य औषधयः)

Based on the strong evidence of the involvement of mind in the causation and progression of fibromyalgia (मनोदैहिक सर्वांग-रुक्), it is advisable to prescribe notropic drugs (मेध्य रसायना:) to the patient in a judicious manner, as follows -

i. In a significant number of patients of fibromyalgia (मनोदैहिक सर्वांग-रुक्), mental depression being the major etio-pathologic factor, it is highly desirable to prescribe anti-depressant drugs (मनोबल्य औषधयः). The effective drugs in this group include - Jyotishmati, Akarkara, Vacha, Gandira (Eleva Tab), Kapikachhu, Ashvagandha, Shilajatu, Yashad (Higro Tab). 

ii. In another group of patients, the underlying anxiety, mental stress, and irritability are the significant etio-pathologic factors. Such patients should be managed with anti-anxiety drugs (मनःशामक औषधयः). The effective drugs in this group include – Tagar, Brahmi (Mentocalm Tab), Shankhpushpi, Mandukparni, Jatamansi.  


2. Immuno-modulator Drugs (आमविषहर औषधयः)

Recent research indicates the involvement of auto-immune process in the development of FM. Use ama-visha-hara (immune-modulator) drugs that help antagoinze the ama-visha (modulate the immunity) may thus be helpful in the related patients. Commonly used drugs, include - 

i.  Ashwagandha, Guduchi, Tulasi, Pippali, Yashad (Imunie Tab).

ii. Bhallatak (RevPlaq Tab, Antivir Tab), Bhumi-amalaki (Phylocil Tab, Livie Tab), Guduchi, Chitrak, Shunthi, Katuki, Suvarna (Suvarnaprashan).

iii. Tamra(-bhasma), Malla(sindur), Tulasi(-swaras), Pippali(-churna), Shilajatu (Shilajatvadi vati), Yashad(-bhasma), Parad (Ras sindur).


3. Analgesic Drugs (वेदनाहर/वातहर औषधयः)

The sensory symptoms – pain, allodynia, paraesthesias - in FM are suggestive of the underlying neuro-endocrine dysfunction (vata-dushti). In order to offer reliefe to the patient in the sensory symptoms, it is therefore important to prescribe drugs that harmonize the neuro-endocrine activity (vata-dosha) and reduce the vedana (pain) due to their vata-hara (blocking pain signals) activity. Commonly used drugs in this group include - 

i. Tagar, Parsika-yavani, Jatiphal, Rakta-marich (DeAlco tab)

ii Jatiphal, Vatsanabh, Godanti (Dolid tab, Maha-vata-vidhwansana rasa, Hinguleshwar rasa)

iii. Shallaki, Erandmula (Loswel Tab), Pippalimula, Guggulu.  


4. Lifestyle modifications (पथ्य-अपथ्यः)

Following non-drug measures and lifestyle modifications have been seen to help in the management of FM – 

i. Exercise (व्यायामः) – Different types of exercises – cardiovascular exercise, aerobic exercise, high-intensity resistance training – have been seen to improve quality of life, and offer relief in pain and fatigue. The exercise should be started with small, frequent exercise periods, and gradually increased in intensity and duration.       

ii. Bio-energy regulation (प्राणायामः) 

iii. Stretching & Relaxation (योगासनाः) 

iv. Meditation (समाधि) 

v. Music therapy (संगीत-उपचारः) 

vi. Art therapy (कला-उपचारः) 

vii. Dietary regulations (आहार-उपचारः) – Vata-vardhak ahar should be avoided. 


5. Psychotherapy (मनःचिकित्सा)

Psycho-therapy (मनःचिकित्सा) given as follows, too have been seen to help in the management of FM – 

i. Thought control (सत्वावजयः) 

ii. Ressurance (आश्वासनम्) 

iii. Do’ and don’ts (यम-नियमः) 

iv. Code of conduct (सद्वृत्तः)

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Ayurvedic Management of Rheumatoid Arthritis (RA)

 Dr.Vasishth's

Ayurvedic Management of Rheumatoid Arthritis (RA)

आमवात का आयुर्वैदिक उपचार

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Dr. Brijbala Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa)

Dr. Sunil Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa), PhD (Hridroga)


The underlying pathology in rheumatoid arthritis  (आमवातः) is the production of auto-antibodies (आमविषः) that attack the joints, resulting in pain, inflammation, stiffness of the multiple joints. In addition, several other tissues, organs, and systems get affected too.


Overtime, with the complete destruction of the joints, contractures may develop that could cripple the patient, making the working difficult. 


Other associated problems include – osteoporosis, cardiovascular disorders, interstitial lung disease, infection, depression, and even cancer.       


MANAGEMENT (उपचारः)

Ayurvedic management of amavata (आमवातः/RA) could be carried  out as below - 


1. Modulate the immunity (आमविष-नाशनम्)

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Use immune-modulator (आमविषहर) drugs that help modulate the abnormal immunity - 


i. Primary Drugs:

Ashwagandha, Bhallatak, Bhumiamalaki, Chitrak, Tulasi, Shunthi, Shilajatu, Guduchi, Katuki, Suvarna.


Preparations: REVPLAQ Tablet, CARTOGEN Tablet, ANTIVIR Tablet, PHYLOCIL Tablet, Amrit-bhallatak, Arogyavardhini, Ashvagandha churna, Guduchi ghan-vati, Chitrak-haritaki, Ama-vatari rasa, Shilajatvadi vati, Shunthi / Vaishvanar / Trikatu churna, Suvarna bhasma, Vrihat-vata-chintamani rasa, Suvarnaprashan.


ii. Secondary Drugs:

Tamra, Malla, Tulasi, Pippali, Shilajatu, Yashad, Parad.


Preparations: Tamra bhasma, Malla-sindur, Samir-pannag rasa, Arogyavardhini, Tulasi swaras, Pippali churna, Shilajatvadi vati, Yashad bhasma. 


2. Manage the inflammation (शोथहरम्)

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Use anti-inflammatory (शोथहर) drugs to reduce the inflammation and stiffness - 


i. Primary Drugs:

Shallaki, Erandmula, Guggulu, Rasna to lower the inflammation by their shotha-hara (anti-inflammatory) action. 


Preparations: LOSWEL Tablet, REVPLAQ Tablet, Simhanad-guggulu, Trayo-dashang guggulu, Rasna-saptak kvath.


ii. Secondary Drugs:

 Dashmula, Ashvagandha, Jatiphal, Haridra, Shunthi.


Preparations: Dashmula kvath, Ashvagandha churna, LOSWEL Tablet, Haridra churna, Shunthi / Trikatu / Panchkol churna.    


3. Manage the pain (वेदनाहरम्)

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Use analgesic (वेदनाहर) drugs that reduce the pain by blocking pain signals - 


i. Primary Drugs:

Jatiphal, Vatsanabh, Godanti relieve pain by their vata-hara activity of blocking the pain signals in the brain and spinal cord (central analgesic action), and lowering stimulation of pain nerve endings – nociceptors (peripheral analgesic action).


Preparations: DOLID Tablet, Jatiphal churna, Hinguleshwar rasa, Maha-vata-vidhwansana rasa, Godanti bhasma.


ii. Secondary Drugs:

Tagar, Parsika-yavani, Rakta-marich, Guggulu, Shallaki, Pippalimula.


Preparations: DEALCO Tablet, MENTOCALM Tablet, REVPLAQ Tablet, LOSWEL Tablet, Pippalimula churna, Maha-yograj guggulu. 


4. Antioxidants (रसायनम्)

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Use antioxidant (रसायन) drugs that reinforces body's defences - 


i. Primary Drugs:

Asthi-shrinkhala, Arjuna, Mandukparni to stimulate osteoblastic activity and Muktashukti, Amalaki, Abhrak, Yashad to supplement calcium, minerals, and vitamins essential, to reinforce new bone formation in osteo-porotic bones.  


Preparations: NUBON Tablet, OSSIE Tablet, Arjuna churna, Mukta-shukti bhasma, Amalaki rasayana, Abhrak bhasma, Yashad bhasma.


ii. Secondary Drugs:

Ashvagandha, Shilajatu, Dugdhika, Mandukparni, Yashad, Kapikachhu to stimulate chondroblastic activity for reinforce weakening and damaged joint cartilage. 


Preparations: CARTOGEN Tablet, HIGRO Tablet, Ashvagandha churna, Shilajatvadi vati.


iii. Tertiary Drugs:

Shilajatu, Amalaki, Mukta-shukti, Abhrak, Yashad, Svarna-makshik to supplement antioxidants, minerals and vitamins.   


Preparations: MINOVIT Tablet, Shilajatvadi vati, Chandra-prabha vati, Yashad bhasma, Abhrak bhasma, Mukta-shukti bhasma.


iv. Supportive Drugs:

Shatavari, Gokshura, Haritaki, Panchatikta, Katuki, Gandhak.   


Preparations: Gandhak rasayana, Shatavari churna, Gokshura churna, Erand-bhrishta Haritaki, Chitrak Haritaki, Pancha-tikta-ghrit guggulu, Katuki churna.


5. External treatment (बहि:चिकित्सा)

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Abhyanga with oils medicated with Gandhapura, Saral-srava, Tailaparna, Karpura, Yavanika, Podinaka, Darusita, Shunthi, Devadaru, Nirgundi, Erandmula, Rakta-marich may bring about relief in pain, stiffness, and other complaints.      


Preparations: LOSWEL Oil, Panchguna Taila, Maha-vishagarbha Taila.    


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Dr.Vasishth's Ayurvedic Management of PCOS / PCOD

 Dr.Vasishth's

Ayurvedic Management of PCOS / PCOD

बहुग्रन्थि-बीजकोषीय-विकृति का आयुर्वैदिक उपचार

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Dr. Brijbala Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa)

Dr. Sunil Vasishth MD (Ay-Kayachikitsa), PhD (Hridroga)


A large number of girls and women, between the age 18-44 years, visit ayurveda clinics and hospitals with the following complaints - 

• Scanty, delayed, and irregular periods (अल्पार्तवम्), or heavy periods (अत्यार्तवम्); inability to conceive (स्त्री-वन्ध्यत्वम्); excessive hair on the face and body (अतिलोमा), male pattern hair loss on the scalp (खालित्यम्); and patches of thick, dark skin (तवक्-गत श्याव-मण्डलानि);

• In addition, these patients may have associated obesity (स्थौल्यम्), diabetes (मधुमेह:), heart disease (हृद्रोगः), hypothyroidism (समान-वात-क्षयः), 

obstructive sleep apnea (स्वप्ने-अवरुद्ध-श्वासः), endometrial cancer (अन्तःगर्भाशये विषार्बुदः).


After their physical examination and investigations, quite often the disease turns out to be Polycystic Ovarian Syndrome - PCOS / PCOD (बहुग्रन्थि बीजकोषीय विकृति).


Here we discuss, the ayurvedic management of Polycystic Ovarian Syndrome - PCOS (बहुग्रन्थि बीजकोषीय विकृति), that we have found largely effective - 


Etio-pathogenesis (हेत्वात्मक सम्प्राप्ति:)

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PCOS (बहुग्रन्थि बीजकोषीय विकृति) usually results from - 

(i) Defective genes, and 

(ii) Unhealthy lifestyle, like - excessive intake of junk food, low/no physical activity, excessive mental stress, environmental toxins and poisons, certain drugs, etc.


These etiological factors affect the body physiology as follows - 


(i) Hypothalamus starts producing excessive Gonadotropin Releasing Hormone - GnRH (उदान-वैषम्यम्), and pancreas starts producing excessive insulin, due to tissue resistance to insulin (समान-वैषम्यम्);

(ii) Excessive GnRH and excessive insulin increase the production of luteinizing hormone (LH) by the anterior pituitary (उदान-वैषम्यम्);

(iii) High levels of luteinizing hormone (LH) stimulate the ovaries to produce excessive testosterone (अपान-वैषम्यम्); 

(iv) Excessive testosterone interferes (आवरण) in the maturation of the ovarian follicles and their rupture - ovulation (बीज-उत्सर्ग:); and

(v) The unruptured ovarian follicle (अविदीर्ण बीज-पुट) keeps getting filled with fluid and thus increasing in the size, resulting ultimately to the development of multiple ovarian cysts - PCOS (बहुग्रन्थि बीज-कोषः).


Management (उपचारः)

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On the basis of the etio-pathogenesis discussed above, the management could be planned and executed as follows - 


1. Harmonize the hypothalamic-pituitary (उदान-वायु साम्यता) activity:

This could be done by using - 

• Shatavari, Putranjiva, Shilajatu, Trivang (Fertie-F tab); and

• Bala, Daruharidra, Shunthi.


These seem to harmonize the hypothalamic-pituitary activity (उदान-वायु साम्यता) through several direct and indirect mechanisms. 


2. Increase tissue sensitivity to insulin (समान-वायु साम्यता):

This could be done by using - 

• Mamajjak, Mesha-shringi, Lata-karanj, Katuki, Pippali, Rakta-marich, Indravaruni (Glycie tab); 

• Bhumiamalaki (Phylocil tab), Kakmachi, Sharpunkha (Livie Tab);

• Darusita, Vijaysar, Jambu-beej, Methi.


These lower the raised insulin in the blood by increasing tissue sensitivity to it. 


3. Harmonize the production and activity of estrogen (अपान-वायु साम्यता):

This could be done by using - 

• Ashok, Lodhra, Lajjalu (Gynorm tab) to reinforce the proloferative phase; and 

• Ulat-kambal, Hirabol,Ghrit-kumari (Mensiflo tab) to reinforce the secretory phase.


4. Reinforce the thyroid functions (समान-वायु साम्यता) and obesity (स्थौल्यम्):

In case, the patient has associated hypothyroidism and/or obesity, there is a need to reinforce the thyroid functions. This could be done by using 

• Brahmi, Guggulu, Gandira, Pippali, Rakra-marich (Thyrin tab) that seem to improve the production of thyroid hormones (समान-वायु साम्यता). 

• Chitrak, Bhallatak, Guggulu (Revplaq Tab) could also be used for improving thyroid functions.

• Some drugs like Shunthi, Pippali, Marich, Chavya, Chitrak (Trikatu, Chaturushan, Panchkol) could also be used for by stimulating thyroid functions (दीपनम्) and metabolism (आमपाचनम्). 


5. Reinforce mental health (रजस्-तमस् साम्यता):

In case, the patient has associated anxiety there is a need to manage the excessive anxiety. It could be done by using - 

• Brahmi, Tagar (Mentocalm tab);

• Shankhpushpi, mandukparni, Jatamansi, etc.


In case the patient has mental depression, she should be advised anti-depressant drugs like - 

• Jyotishmati, Akarkara, Vacha, Gandira (Eleva tab), etc. 


6. Manage the associated diseases (सह-रोग उपचारः):

In the presence of other associated diseases, the same should be managed, as well. 


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