Tuesday, November 22, 2016

आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 8 'आगे की तैयारी'




आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 8
'आगे की तैयारी'





डॉ. राजेंद्र वर्मा जी के कक्ष से बाहर निकलने के बाद मैं आयुर्वैदिक काॅलेज परिसर के बीचों-बीच खड़े विशाल अश्वत्थ वृक्ष के नीचे, कांक्रीट से बने चबूतरे पर जा बैठा, व अभी-अभी सम्पन्न हुई चर्चा के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने लगा।

फिर स्वयं का आकलन करते हुए मैंने अपने आप से प्रश्न किया, 'आगे मुझे क्या करना चाहिए? मेरे अन्य साथियों की भाँति सरकारी नौकरी के लिए प्रयास करना चाहिए, वैद्य विष्णुदत्त जी की तरह निजी प्रैक्टिस करनी चाहिए, या फिर मुझे किसी अच्छे संस्थान से MD (Ayurveda) करके बाकी लोगों से हट कर स्वयं के साथ-साथ आयुर्वेद के विकास के लिए अपना योगदान देना चाहिए?'

मेरे घर-परिवार की ज़िम्मेदारियाँ मुझे सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित कर रही थीं। मेरे कुल में सौ वर्षों से भी अधिक चली आ रही वैद्य-परम्परा मुझे वैद्य विष्णुदत्त जी की तरह निजी प्रैक्टिस की ओर खींच रही थी। तथा, आयुर्वेद के विकास के लिए योगदान देने की मेरी ज्वलंत चाह मुझे आगे पढ़ने व आयुर्वेद के लिए कुछ कर गुजरने के लिए बाध्य कर रही थी।

मेरे लिए तीनों का अपने-अपने स्थान पर बहुत महत्व था तथा इनमें से किसी एक को भी नज़र अन्दाज़ करना कठिन हो रहा था।
अचानक मेरी दृष्टि डाॅ. उमादत्त जी शर्मा पर पड़ी जो काॅलेज के अस्पताल की ओर जा रहे थे।

डाॅ. उमादत्त जी शर्मा लगभग दो वर्ष पूर्व BHU (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) की आयुर्वेद फैकल्टी से MD (कायचिकित्सा) करके लौटे थे।
काॅलेज में उनके आते ही, पहले से चला आ रहा निराशा, उदासी, व 'आयुर्वेद-में-कुछ-नहीं-हो-सकता' का वातावरण, अचानक ही अभूतपूर्व आशा, उत्साह, व 'बहुत-कुछ-हो-सकता-है' में परिवर्तित हो गया था ।

BHU में आयुर्वेद के क्षेत्र में चल रहे अनुसंधान, आयुर्वेद व ऐलोपैथी के संकायों का चिकित्सा विज्ञान संस्थान (IMS) में एक साथ मिलकर काम करना, वहाँ की बेजोड़ फैकल्टी, व BHU की अपनी अनूठी संस्कृति, यह सब एक सपने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिससे प्रभावित हो कर काॅलेज का लगभग हर विद्यार्थी वहां MD करने का सपना संजोए हुए था।

मैं भी इस सपने से अछूता न रह पाया था।
डाॅ. उमादत्त जी की लगभग हर बात मैं अपने परिवारजनों के साथ बाँटता, व प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से BHU में MD करने की अपनी इच्छा प्रदर्शित किया करता।

मेरे द्वारा दिए गए विवरण के आधार पर मेरे परिवारजन भी मुझे MD कराने को राज़ी हो गए थे, किन्तु ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते परिवार के प्रति अपने उत्तरदायित्व से मैं विमुख भी तो नहीँ हो सकता था।
इसी उधेड़बुन में मैं उठ खड़ा हुआ व मेरे पग अनायास डाॅ उमादत्त जी के कक्ष की ओर बढ़ चले।

डाॅ. उमादत्त जी ने मुस्कुराते हुए पूरे जोश के साथ मेरा स्वागत किया। हर आगंतुक की इसी प्रकार से स्वागत करने की उनकी यह आदत मुझे बेहद पसंद थी।
संयोगवश वहाँ कोई अन्य व्यक्ति उपस्थित नहीँ था। मैंने उन्हें MD करने की अपनी ज्वलंत इच्छा व अपनी परिस्थितियों के बारे में बेझिझक अवगत करा दिया।

सुनकर वह कुछ देर तक सोचते रहे व फिर मेरे कन्धे पर अपना हाथ रखते हुए स्नेहपूर्ण शब्दों में बोले, 'मेरे विचार से अभी आपको MD करनी चाहिए, बाकी सब कुछ मैनिज किया जा सकता है।'
उनके हाथ के स्पर्श व शब्दों ने मेरे तन-मन में एक अद्भुत शक्ति का संचार करते मुझ में ज़बरदस्त जोश भर दिया।

वहीं बैठे-बैठे मैंने निर्णय किया - 'कुछ भी हो, MD तो मैं करूँगा ही'।
फिर मैंने उनसे BHU में MD (Ayurveda) में प्रवेश हेतु प्रक्रिया की विस्तारपूर्वक जानकारी ली तथा उनसे इस काम के लिए सहायता मांगी, जिसका उन्होंने भरपूर आश्वासन दिया।

मैंने डाॅ. उमादत्त जी को हृदय से धन्यवाद दिया, उन्हें नमस्कार किया व उनके कक्ष से बाहर निकल आया।
मैं अत्यंत प्रसन्न था। डाॅ उमादत्त जी से मिले दिशानिर्देश व सहायता के आश्वासन के पश्चात् मुझे उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे BHU में MD (Ayurveda) में अब मैं प्रवेश ले कर ही रहूँगा।

व्यक्ति के भीतर जब कुछ करने की चाह इस क़दर बढ़ जाती है तो सारी कायनात उसे सहायता करने के लिए करबद्ध खड़ी नज़र आती है।



डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com

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