Wednesday, November 23, 2016

आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 26 'हृदय पर कार्यकारी औषधियाँ''




आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 26
'हृदय पर कार्यकारी औषधियाँ'





मुझे ज्ञात नहीें कि यह मात्र एक संयोग था अथवा विभिन्न विभागों का उत्कृष्ट परस्पर समन्वय, कि क़रीब-क़रीब उन्हीं दिनों IMS, BHU के Pharmacology विभाग ने Cardio-vascular Pharmacology पर लैक्चर्स आरम्भ कर दिए।

यहाँ यह बता देना आवश्यक होगा कि उन दिनों IMS, BHU के Pharmacology department की गणना, भारत के उत्कृष्टतम Pharmacology departments में की जाती थी। न केवल विभाग के अध्यक्ष प्रो. पी. के. दास अपने क्षेत्र के एक अन्तराष्ट्रिय ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे, अपितु उनकी टीम के सभी सदस्य अपने-अपने क्षेत्रों में विशेष स्थान प्राप्त कर चुके थे ।

इनमें से एक प्रमुख नाम था - डाॅ. एस. के. भट्टाचार्य, जो Cardio-vascular Pharmacology के विशेषज्ञ थे।
यह हमारा परम सौभाग्य था कि उन्हीं डाॅ. भट्टाचार्य जी ने हमें Cardio-vascular Pharmacology पढ़ाना शुरु किया था।

डाॅ. भट्टाचार्य जी अपने व्याख्यान में जटिलतम विषयों को इस क़दर सुगम व सुरुचिपूर्ण बनाने की कला में निपुण थे कि प्रायः उनकी कक्षा में समय बीत जाने का एहसास ही नहीँ हुआ करता था।

उन्होंने पहली बार हमें हृदय व रक्त-वाहिनियों में विद्यमान alpha (1, 2) व beta (1, 2) receptors तथा इनके blockers के सिद्धांत से परिचित कराया ।

इसके अलावा उन्होंने हमें Autonomic Nervous System (ANS), उसके दो भेदों - Sympathetic व Parasympathetic Nervous System, इनमें से स्रवित होने वाले Catecholamines (Nor-adrenaline व Adrenaline) तथा Acetylcholine के बारे में इस सीमा तक अवगत करा दिया कि कक्षा के तक़रीबन हर छात्र की ज़ुबान पर केवल उनका ही नाम छा गया था।

इसके साथ-साथ उन्होंने Digitalis (हृत्पत्री) की कार्यशैली (Mode of action), चिकित्सकीय उपयोगिता (Therapeutic usefulness), मात्रा (Digitalisation), व विषाक्तता (Toxicity) के बारे में इस क़दर जानकारी दी कि हम में से हरेक छात्र के भीतर Cardio-vascular Pharmacology को लेकर एक अभूतपूर्व आत्मविश्वास स्पष्ट झलकने लगा था।

विशेषकर, जिस कौशल से डा. भट्टाचार्य जी ने डिजिटैलिस की कार्यशैली बताते हुए हृद्-मांस-धातु के कोषाणुओं में कैल्शियम (व सोडियम) का प्रवेश तथा पोटाशियम का निर्गमन, व उससे होने वाले एॅक्टिन व मायोसिन के आकुञ्चन का अत्यन्त सरल रीति से वर्णन किया, वह वन्दनीय था। उनकी ओजस्-पूर्ण वाणी का एक-एक शब्द आज भी मुझे पूरी तरहसे याद है।

इसके साथ-साथ डाॅ. भट्टाचार्य जी ने हमें Anti-ischemics, Anti-hypertensives, Anti-arrhythmics, Anticoagulants इत्यादि औषध-वर्गों व औषधियों के बारे में प्रचुर ज्ञान दिया ।

डाॅ. भट्टाचार्य जी के द्वारा प्रदत्त ज्ञान व दिशा से प्रेरित हो कर, अगले अनेकों सप्ताह तक मैं IMS Library में कई-कई घण्टे अध्ययन करते हुए, आयुर्वेद में विभिन्न हृदय रोगों की चिकित्सा के लिए वर्णित औषधियों का विश्लेषणात्मक (Analytical) व तुलनात्मक (Comparative) अध्ययन करता रहा।

हृद्-मांस-धातु (Cardiac musculature) को बल देने वाली (Cardiotonic / Positive inotropic) जिस औषधि से मेरा सब से पहले परिचय हुआ, वह थी - अर्जुन (Terminalia arjuna)।

मैंने देखा कि शायद ही कोई ऐसी संहिता हो जिस में यह औषधि 'उत्कृष्टतम हृद्य' के रूप में वर्णित न की गई हो । यहाँ तक कि उत्तरकालीन आचार्यों व अन्य लेखकों ने भी इसी को सर्वोत्तम हृद्य माना था।

मुझे यह जान कर अपार हर्ष हुआ कि गत कुछ वर्षों से अर्जुन के कर्मों (Actions) पर नवीन रुचि प्रदर्शित करते हुए कुछेक शोधकर्ताओं ने इसके कुछ अज्ञात पहलुओं पर काम किया था, तथा प्राथमिक अध्ययनों से पता चला था कि अर्जुन हृद्-मांस-धातु की आकुञ्चन क्षमता को बढ़ाने (Improves cardiac contractility) के साथ-साथ यह:

- हृदय के मांस-धातु की विभिन्न हानिकारक तत्वों से रक्षा करता है (Cardio-protective);
- हृदय को रक्त की आपूर्ति में वृद्धि (Improves coronary blood supply) करता है;
- बढ़ी हुई हृद्-गति (Heart rate) को सामान्य करता है; व
- बढ़ी हुई रक्तगत मेदस् (Raised cholesterol/triglycerides) को सामान्य करता है, इत्यादि।


इन शोधकर्ताओं में अग्रणी थे डाॅ. श्रीधर द्विवेदी जो IMS, BHU के मैडिसिन विभाग में रीडर व अस्पताल के उपाधीक्षक (Dy. Medical Superintendent) थे।
डाॅ. द्विवेदी जी की अर्जुन में रुचि वन्दनीय थी।

इससे उत्साहित हो, मैंने हृद्-बल्य (Cardiotonic) औषधियों की एक सूची बनाते हुए निम्न औषधियों का संकलन किया।

1. अर्जुन (Terminalia arjuna)
2. अकीक
3. ज़हरमोहरा
4. अभ्रक
5. मुक्ता, मुक्ताशुक्ति, प्रवाल इत्यादि कैल्शियम प्रधान द्रव्य
6. करवीर (Nerium indicum)
7. वनपलाण्डु (Urginea indica)


इनके साथ-साथ कुछ अन्य औषधियाँ भी थीं जो हृद्-मांस-धातु पर प्रत्यक्ष प्रभाव न डाल कर कतिपय अन्य रीतियों से हृद्-मांस-धातु को बल प्रदान करती थीं, यथा -

1. कटुकी (Picrorrhiza kurroa)
2. पुनर्नवा (Boerrhavia diffusa)
3. शालिपर्णी (Desmodium gangeticum)
4. पृश्निपर्णी (Uranus picta)
5. स्वर्ण (Gold)
6. आमलकी (Emblica officinalis)
7. हरीतकी (Terminalia chebula), इत्यादि ।


इनमें से करवीर की अन्तःधूम भस्म पर IMS, BHU के कायचिकित्सा विभाग में प्रो. एस. एन. त्रिपाठी जी के निर्देशन में डा. लक्ष्मीधर शुक्ला जी (के.जी.एॅम.पी. आयुर्वेद महाविद्यालय, मुंबई में पूर्व प्राध्यापक) हृद्दौर्बल्य (Heart failure) में कार्य कर चुके थे, व उत्साहजनक परिणाम भी प्राप्त हुए थे।

पश्चात् काल में यह औषध हृद्दौर्बल्य (Heart failure) की चिकित्सा में क्यों कर प्रचलित न हो सकी, यह पता न चल सका। कदाचित् करवीर की विषाक्तता इसके प्रयोग में आड़े आ गई थी।

एक अन्य औषधि जिसने मेरा ध्यान आकर्षित किया, वह थी - वनपलाण्डु (Urginea indica)। मुझे इस बात से असीम कष्ट हुआ कि Digitalis के समकक्ष प्रभाव की क्षमता रखने वाली इस महान औषधि पर कोई विशेष शोध नहीँ हो पाया था।

मैंने निश्चय किया कि भविष्य में, हृद्-मांस-धातु को बल देने वाली (Cardiotonic / Positive inotropic) इस अतुल्य औषधि पर कार्य अवश्य करुँगा व इसकी प्रतिष्ठा को स्थापित करुँगा।

वनपलाण्डु के कई बरस तक के गहन अध्ययन से मुझे लगने लगा कि कदाचित् यह भी Digitalis (हृत्पत्री) की तरह ही कार्य करते हुए हृदय के मांस-धातु को बल देती है व उसी के समान हृद्दौर्बल्य (Heart failure) में इसकी चिकित्सकीय उपयोगिता (Therapeutic usefulness) भी है।
...

बरसों बाद...

फरवरी 2015 में, हमने एक औषध-योग लाँच किया, जिसका हम लोगों ने बरसों तक हृद्दौर्बल्य (Heart failure) की चिकित्सा में सफल प्रयोग किया था। इस योग में निम्न घटक थे -

- अर्जुन (Terminalia arjuna)
- ज़हरमोहरा
- अकीक
- गाण्डीर (Coleus forskohlii)
- वनपलाण्डु (Urginea indica)



इसे हमने नाम दिया -
"CARDITONZ Tablet"..




डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com


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