Tuesday, November 22, 2016

आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 6 'प्रभावो अंशतः चिन्त्यम्'

आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 6'प्रभावो अंशतः चिन्त्यम्'




वैद्य श्री विष्णुदत्त जी के चिकित्सालय में उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक भीड़ थी।
मैं धीरे से उनके पास गया, उनके पाँव छू कर उन्हें प्रणाम किया, व पास पड़ी एक कुर्सी पर चुपचाप बैठ गया।

वैद्यजी ने मेरी ओर देखा, हल्के से मुस्कुराए, व प्रवाहिका (acute bacillary dysentery) से पीड़ित एक युवा महिला रोगी को देखते रहे, जिसे उन्होंने 3 दिन पहले निम्न औषधियाँ दी थीं -

1. हरीतकी 1 ग्राम + पिप्पली 250 mg, दिन में 3 बार;

2. पञ्चामृत पर्पटी 250 mg + शंख भस्म 250 mg, दिन में 3 बार ।


रुग्णा पहले दिन की अपेक्षा काफी सुधार बता रही थी।
मेरे लिए यह कोई नई बात नहीँ थी। वैद्यजी के अनेकों रोगियों में इस प्रकार का परिणाम नित्य प्रति मिलता था।
मेरे दादा जी ऐसे रोगियों को उपरोक्त औषधियों के साथ-साथ अतिविषा चूर्ण 500 mg 3 बार देते थे, व ऐसा ही या फिर इससे भी तीव्र व अधिक सुधार देखने को मिलता था।

उस शाम मेरे मन की उथल-पुथल अन्य दिनों की अपेक्षा कहीं अधिक थी, तथा मैं वैद्यजी के साथ 'प्रभावो चिन्त्यम्' के अपने प्रस्ताव पर चर्चा अवश्य चाहता था।
चिकित्सालय से निकलने का मेरा समय बीत जाने पर भी मैं बैठा रहा।

अचानक वैद्यजी ने मेरी ओर देखा व बोले, 'कुछ पूछना है?'
'जी!', मैंने धीमे से कहा ।
'ठीक है, थोड़ी देर बाद बात करते हैं', कह कर उन्होंने ने रोगियों को देखने का सिलसिला जारी रखा ।

शाम के लगभग 9 बजे उस दिन के अन्तिम रोगी को निबटा कर वैद्यजी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से देखते हुए मुझे कहा, 'अब पूछिए!'
मैंने शीघ्रता से संक्षेप में अपने विचार व मेरे अन्य गुरुजी से हुई चर्चा का विवरण उन्हें दे दिया ।

सुन कर, सदा की भाँति उन्होंने कुछ क्षण विचार किया व फिर बोले, 'आपका विचार उचित है परन्तु विज्ञान अभी उस स्तर पर नहीँ पहुंचा है कि यह आयुर्वेद के सभी सिद्धांतों को प्रतिपादित कर सके'।
पूरी तरह से उनकी बात न समझ पाने के कारण मैं कुछ न बोला, केवल जिज्ञासावश उनकी ओर पूरी तल्लीनता से देखता रहा।

'यह सच है कि 'कार्य-कारण सिद्धांत' के आधार पर हमें औषधियों के कर्मों (Pharmacological actions) के लिए उत्तरदायी तत्वों को औषधियों के भीतर ही खोजना होगा। परंतु, कटु सत्य यह है कि आधुनिक विज्ञान अभी अपनी शिशु-अवस्था में है, तथा इसकी उपलब्धियों के आधार हम आयुर्वेद के सिद्धांतों में कोई मुख्य परिवर्तन अथवा सुधार लाने की स्थिति में नहीँ हैं।' वैद्यजी ने अत्यंत स्पष्टतासे अपने विचार प्रस्तुत किए।

'परंतु, वैद्यजी क्या यह संभव नहीँ कि अभी तक के वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा ज्ञात औषधियों के विभिन्न घटकों, यथा - alkaloids, glycosides, saponins, phytosteroids, enzymes, tannins, volatile oils, acids - आदि के आधार पर हम सिद्धांत रूप से इतना भर मान लें कि प्रभाव को अब आंशिक रूप से चिन्त्य कहा जा सकता है?' मैंने अपने प्रस्ताव पर उनके विचार जानने का प्रयास करते हुए उनसे विनम्रता से पूछा।

'हाँ, इतना तो हमें मानना ही पड़ेगा। ऐसा न करना सत्य को नकारने जैसा होगा', वैद्यजी ने सदा की भाँति मुस्कुराते हुए कहा ।

सूर्यास्त हुए काफी देर हो गई थी व रात गहराने लगी थी, परंतु मेरे विचारों में हो रहे इस नए सूर्योदय से प्रफुल्लित मन से मैं वैद्यजी को कोटि-कोटि धन्यवाद देता हुआ उनके चिकित्सालय से बाहर आ गया।

डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com

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