Tuesday, November 22, 2016

आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 22 'शिष्योपनयन संस्कार'


  आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 22
'शिष्योपनयन संस्कार'






एक दिन हमें सूचना प्राप्त हुई कि अगले कुछ दिनों में हम लोगों का शिष्योपनयन संस्कार होना तय हुआ है।
शिष्योपनयन एक वैदिक परम्परा है, जिसे सम्पन्न करने के पश्चात् ही गुरु किसी अभ्यर्थी को पूर्ण रूप से शिष्य के रूप में स्वीकारते हुए, ज्ञान प्राप्त करने की अनुमति प्रदान करते हैं।

सत्य तो यह है कि आधुनिक काल में इसका स्थान 'प्रवेश परीक्षा' ने ले लिया है व इस प्रकार के आयोजनों का महत्व केवल सांकेतिक ही रह गया है।
तो भी इसके द्वारा गुरु व शिष्य के मध्य एक भावनात्मक सेतु का निर्माण तो होता ही है।

बी.एॅच.यू के आयुर्वेद संकाय (Faculty of Ayurved) में शिष्योपनयन संस्कार का आयोजन पहली बार किया जा रहा था, एतदर्थ सब लोगों का परमोत्साहित होना स्वाभाविक ही था ।
शिष्योपनयन संस्कार के रोज़, संकाय के समस्त सदस्य - गुरुजन, छात्र, व प्रशासन के लोग - सुबह 9 बजे चिकित्सा विज्ञान संस्थान (IMS) के लैक्चर थिएटर नं 1 में एकत्रित हुए।

सदा पैंट-शर्ट में दिखने वाले पुरुष वर्ग को अनौपचारिक श्वेत धोती-कुर्ता में देखना विचित्र लग रहा था । महिलाएँ सदा की भाँति साड़ी में ही थीं।
कुछ ही समय में हाॅल भरने लगा । कुछ एक छात्रों को छोड़, हाॅल में प्रविष्ट होने वाले अधिकांश चेहरे मेरे लिए अन्जाने थे।

फिर एक-एक कर कई हस्तियाँ मंच पर विराजमान होने लगीं। उनके बारे में जानने के लिए मेरी उत्सुकता हर पल द्रुत गति से बढ़ती चली जा रही थी।
तभी बड़े फ्रेम का चश्मा पहने, एक भद्र पुरुष ने, मणिपूर चक्र से निकली, अपनी पतली आवाज़ में, समारोह के संचालन हेतु माईक पर बोलना शुरु किया।

यह थे प्रो. गोरखनाथ चतुर्वेदी - काय-चिकित्सा के वरिष्ठ प्रोफेसर ।

उन्होंने मंच पर विराजमान सभी व्यक्तियों के स्वागत हेतु एक-एक हस्ती का नाम लिया, जो कि इस प्रकार थे -

1. Prof. K. N. Udupa - Founder Director, Institute of Medical Sciences, BHU;
2. Prof. J. Nagchaudhury - Director, IMS, BHU;
3. Prof. P. V. Sharma - Former Dean, Faculty of Ayurveda, IMS, BHU;
4. Prof. Y. N. Upadhyay - Former Professor & Head, Kayachikitsa;
5. Prof. P. J. Deshpande - Professor & Head, Shalya-Shalakya;
6. Prof. Ram Sushil Singh - Professor & Head, Ras-Shastra;
7. Prof. L. V. Guru - Professor & Head, Basic Principles;
8. Prof. P. V. Tewari - Professor & Head, Prasuti & Balroga;
9. Prof. S. N. Tripathi - Professor & Head, Kayachikitsa;

इसके साथ-साथ उन्होंने हाॅल में मौजूद जिन और हस्तियों का नामोल्लेख किया, वे थे -

1. Dr. J. K. Ojha - Reader & Head, Dravyaguna;
2. Dr. R. H. Singh - Reader, Kayachikitsa;
3. Prof. L. M. Singh - Professor Shalya;
4. Dr. G. C. Prasad - Reader, Shalya;
5. Dr. D. Joshi - Reader, Ras-Shastra;
6. Prof. H. C. Shukla - Professor Basic Principles;
7. Dr. A. B. Ray - Reader & Head, Medicinal Chemistry;
8. Dr. Chandan Chaturvedi - Reader, Balroga...
व कुछ अन्य ।


अतिथि स्वागत के पश्चात् प्रो. चतुर्वेदी जी ने शिष्योपनयन संस्कार की महत्ता पर बल देते हुए इसके आयोजन को उचित ठहराने का भरपूर प्रयास किया ।
फिर उन्होंने सभी विभागों के एॅम. डी. (आयुर्वेद) के सभी नवागंतुक छात्रों व सम्बद्ध शिक्षकों को एक-एक करके मंच पर आमन्त्रित किया।

हम सभी अपने-अपने शिक्षकों के समक्ष परम आदर के साथ खड़े हो गए ।
इसके पश्चात् हमारे शिक्षकों ने हमें निम्न सद्गुणों के पालन व संवर्धन हेतु शपथ दिलाई - सदाचार, अनुशासन, सत्यवदन, शुचिता, कठिन परिश्रम, वरिष्ठों का आदर, व दीन-दुखीयों के प्रति दयाभाव।

शपथ लेते समय मैंने अपने रोम-रोम में कम्पन अनुभव किया। मुझे लगा रहा था कि आज मैं सही अर्थों में न केवल वैद्य अपितु एक मानव बन रहा हूँ।
हमारे शपथ-ग्रहण के उपरान्त हमारे शिक्षकों ने निःस्वार्थ भाव से हमें शिक्षा प्रदान करने का आश्वासन दिया ।

शपथ-ग्रहण के पश्चात् मैं एक नितांत भिन्न व्यक्ति हो चुका था। शपथ का एक-एक शब्द मेरे अन्तर्मन की गहराईयों में उतर चुका था।
मैंने मन ही मन अपने आप से कहा, 'शपथग्रहण तो ले ली है बच्चू, अब मज़ा तो तब है जब इसे आजीवन निभा कर दिखाओ'।

फिर उसी गहराई से एक और आवाज़ आई, 'आज ली गई इस पवित्र शपथ को मैं आजीवन निभाने की प्रतिज्ञा करता हूँ।'
इस विचार से मेरा रोम-रोम खड़ा हो गया।

कुछ देर तक मुझे पता ही न चला कि हाॅल में क्या चल रहा है ।
मेरी चेतना तब लौटी जब पास बैठे मेरे एक साथी ने, मेरे पार्श्व में कोहनी गड़ाते हुए मुझे सचेत किया, 'मंच पर जा कर अपना परिचय दीजिए; आपको बुलाया जा रहा है'...

मैं झटके से अपने पैरों पर खड़ा हो गया व तेज़ डग भरता हुआ मंच की ओर लपका।
फिर मैंने बिन्दास अपने अन्तर्मन में चल रहे मनोभावों को सब के समक्ष रखा दिया ।
मेरा भाषण मेरे सहपाठियों की अपेक्षा किञ्चित् लम्बा खिंच जाने से मैं कुछ झेंप सा गया था।


वापस अपने स्थान पर बैठते हुए मिली भूरि-भूरि प्रशंसा से मुझे लगा कि अनायास मैं सचमुच कुछ सार्थक बोल गया था...


डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com

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