आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 16
'प्रवेश परीक्षा व परिणाम'
9 जुलाई की प्रातः दस बजे चिकित्सा विज्ञान संस्थान के लैक्चर हाॅल नं. 1 में हमारी लिखित परीक्षा आरम्भ हुई ।
मैंने एक उड़ती हुई निग़ाह हाॅल में मौजूद सभी परीक्षार्थियों पर डाली । लगभग सभी चिन्तित व भयभीत लगा रहे थे। हाॅल में एक तनावपूर्ण शान्ति का राज था।
परीक्षा चीज़ ही ऐसी है, अच्छे अच्छों के छक्के छुड़ा देती है।
प्रत्येक परीक्षार्थी को दो प्रश्न पत्र मिले -
(1) जनरल पेपर - जो सभी परीक्षार्थियों के लिए था;
(2) स्पैश्लटी पेपर - जो सभी विषयों के लिए भिन्न-भिन्न था।
मैंने कायचिकित्सा में पी.जी के लिए फॉर्म भरा था, अतः मेरे लिए स्पैश्लटी पेपर कायचिकित्सा का था।
धड़कते दिल के साथ मैंने दोनों प्रश्न पत्रों पर एक उड़ती हुई निग़ाह डाली ताकि पूछे गए प्रश्नों के बारे में कुछ राय बना सकूँ।
सभी प्रश्न ऑब्जेक्टिव टाईप थे।
प्रथम दृष्टया, मोटे तौर पर मुझे दोनों प्रश्न पत्र सरल लगे। बस, कुछ एक प्रश्न ऐसे प्रतीत हुए जिन पर मैं किञ्चित् आशंकित था।
मैंने कुछ राहत की सांस ली व अपनी घबराहट पर काबू पाने की कोशिश की ।
फिर मैंने सरलतम प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्रथम राउंड शुरु किया। मैंने कई प्रश्नों के उत्तर कुछ ही समय में दे दिए।मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा।
इसके पश्चात् कुछ कठिन प्रश्नों के उत्तर देने के लिए द्वितीय राउंड शुरु हुआ। इस बार मैंने हरेक प्रश्न पर पहले से अधिक समय दिया । प्रश्न कठिन होने के कारण बीच-बीच में बढ़ने वाली घबराहट को नियंत्रित करना जरूरी था। यह राउंड पूरा करते करते मेरा आत्मविश्वास पहले से कोई गुणा बढ़ गया था ।
इसके पश्चात् कठिनतम प्रश्नों वाला तृतीय राउंड शुरु किया । अपने भय पर पूर्ण नियंत्रण रखते हुए, मैंने अपनी समस्त बौद्धिक शक्ति का आह्वान किया व सर्वोत्तम ढंग से हरेक प्रश्न पर गहन विचार करते हुए उसका उत्तर देने का प्रयास किया ।
मानव मन की यही विशेषता है - चुनौती सामने हो तो सर्वोत्तम ढंग से कार्य करता है ।
अन्त में मैंने उन प्रश्नों को छुआ जिनके उत्तर के बारे में या तो मैं अनिश्चित था, अथवा मैं जानता न था। उन दिनों नैगेटिव मार्किंग नहीँ होती थी, अतः मैंने सभी प्रश्न अटैम्प्ट किए।
परीक्षा के दौरान प्रश्न पत्रों के उत्तर देने का शुरु से ही मेरा यही ढंग रहा था।
परीक्षा स्थल से बाहर आने पर मैंने अन्य परीक्षार्थियों को आपस में वार्तालाप करके अपनी कारगुज़ारी का आकलन करने का प्रयास करते देखा।
अधिकांश परीक्षार्थी बहुत अधिक घबराए हुए व मायूस लगा रहे थे।
मैं सामान्य व आत्मविश्वास से परिपूर्ण था। मुझे विश्वास था कि मैं परीक्षा में उत्तीर्ण अवश्य होने वाला हूँ ।
परीक्षा के बाद मैं नागार्जुन हाॅस्टल के अपने अस्थायी निवास में आ गया। उस समय अपराह्नकाल था। कई अन्य परीक्षार्थी भी हाॅस्टल पहुँच गए ।
हाॅस्टल के लगभग सभी कमरों में काफ़ी गहमागहमी का वातावरण था। परीक्षार्थियों के होंठ सूखे हुए थे । वरिष्ठ छात्र परीक्षार्थियों की कारकरदगी का अच्छे से अच्छे ढंग से आकलन करने में लगे थे ।
कुछ लोग परीक्षा के परिणाम की तिथि का भी अनुमान लगा रहे थे ।
मैंने मैस में भोजन किया व कुछ देर विश्राम करने के लिए फ़र्श पर बिछे अपने बिस्तर पर लेट गया।
...
सायंकाल लगभग छः बजे किसी की आवाज़ से मेरी नींद खुली।
'सुनील, कितना सोओगे? उठना नहीँ है क्या?' डाॅ. कोहली मुझे झकझोरते हुए कह रहे थे ।
मैं आँखें मलते हुए बैठ गया । पिछले तीन दिन की कई-कई घण्टों की निरंतर पढ़ाई व अभ्यास ने मुझे गहराई तक थका दिया था।
'मैं डाॅ. योगेन्द्र शर्मा के साथ लंका जा रहा हूँ। तुम को चलना है?' डाॅ. कोहली ने अपनी पैंट की बैल्ट कसते हुए कहा ।
'लंका?' मैंने आश्चर्यचकित हो कर प्रतिप्रश्न किया ।
'ओह साॅरी! बी.एॅच.यू. मेन गेट के बाहर के बाज़ार का नाम है।' डाॅ. कोहली ने सफ़ाई देते हुए कहा।
'आप लोग जाईए; मैं कमरे पर ही रुकुँगा।' मैंने पुनः लेटते हुए कहा।
'ओ.के.! हमें आने में देर हो जाए तो मैस में खाना खा लेना।' कहते हुए डाॅ. कोहली कमरे से बाहर निकल गए।
मैं उठा अन्दर से दरवाज़ा बन्द किया व फिर लेट गया।
...
अगली प्रातः मैं उठा तो अपने आप को पूरी तरह से तरोताज़ा पाया। हाँ, मुझे तेज़ भूख अवश्य लग रही थी।
तभी मुझे याद आया कि गत रात्रि मैं बिना कुछ खाए ही सो गया था । देर रात डाॅ. कोहली के दरवाजे पर दस्तक देने व फिर लगभग बन्द आँखों में ही उठ कर मेरे दरवाज़ा खोल कर पुनः सो जाने की बात भी मुझे हल्की सी याद हो आई।
कमरे के एक कोने में पड़ी मेज़ पर पड़े पार्लेजी बिस्किट का पैकेट उठा, मैं बाहर बाल्कनी में आ गया व सामने सड़क पर आते जाते लोगों को देखते हुए, वहीं खड़े-खड़े ग्लूकोज़ बिस्किट खाने लगा।
डाॅ. कोहली अभी भी लम्बी तान दिए बैड पर गहरी नींद में सोए हुए थे ।
तभी दरवाजे़ पर किसी ने दस्तक दी । मैंने लपक कर दरवाज़ा खोला ।
सामने डाॅ. योगेन्द्र शर्मा जी खड़े थे।
'कैसे हो सुनील? रात खाना खाया था या फिर ऐसे ही सो गए थे?' उन्होंने कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा।
फिर उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही बोल उठे, 'आज का क्या प्रोग्राम है?'
'जी अभी तक तो कुछ नहीँ; डाॅ. कोहली उठेंगे तो तभी कुछ कह सकता हूँ', मैंने बचा हुआ बिस्किट निगलते हुए कहा ।
'ऐसा करना, आप लोग 11-12 बजे तक तैयार हो कर IMS आ जाना। सुना है आज ही लिस्ट निकलने वाली है।' डाॅ. योगेन्द्र शर्मा जी ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा।
मेरा कलेजा मुंह में आज गया। परीक्षा के परिणाम की दहशत ही कुछ ऐसी होती है कि अच्छे-अच्छों को पसीना आ जाता है ।
...
तैयार हो, हम लोग लगभग बारह बजे, चिकित्सा विज्ञान संस्थान के मुख्य कार्यालय पहुँचे ।
वहाँ नोटिस बोर्ड के आगे एकत्रित भीड़ को देख मेरा दिल बैठने लगा।
'मेरा नाम लिस्ट में न हुआ तो?' नकारात्मक विचार आते ही मेरी टाँगों की शक्ति जाती रही।
'एॅम. डी. ही तो सब कुछ नहीँ है; और भी तो बहुत कुछ है करने को...' मैंने अपने आप को दिलासा देते हुए कहा।
मगर मैं जानता था - मेरे लिए एॅम. डी. से ऊपर कुछ भी नहीें था। मेरे लिए एॅम. डी. ही सब कुछ थी। दाव पर बहुत कुछ था।
धड़कते दिल व काँपती टाँगों से मैं भीड़ को कुहनियों से दोनों ओर हटाता हुआ आगे बढ़ा व नोटिस बोर्ड के एकदम क़रीब पहुँचने में सफल हो गया ।
सब से पहले मेरी दृष्टि मौलिक सिद्धांत विभाग के सफल उम्मीदवारों पर पड़ी, फिर रस शास्त्र व द्रव्य गुण विभाग। फिर प्रसूति तन्त्र व कौमारभृत्य । इसके पश्चात् मेरी दृष्टि कायचिकित्सा की सूची पर पड़ी, जो इस प्रकार थी -
1. Dr. Sunil Vasishth
2. Dr. Kuldeep Raj Kohli
3. Dr. Shishu Pal Singh
4. Dr. Shashi Dhar Trivedi
5. Dr. Onkar Nath Dwivedi
6. Dr. Kamal Nayan Goel
सबसे ऊपर अपना नाम देख कर मेरी आँखें छलछला आईं ।
एॅम. डी. (आयुर्वेद) कायचिकित्सा के इस आॅल इन्डिया एॅन्ट्राॅन्स इग्ज़ैमीनेशन में मैं टाॅप कर चुका था।
आँसुओं से डबडबाती आँखों से, अपने सार्थक भविष्य की एक हल्की सी झलक, मैंने देख ली थी ...
डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com
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