हार्ट फेलियर (Heart failure) -2
सर सुन्दरलाल चिकित्सालय के प्रथम तल पर स्थित कायचिकित्सा
वार्ड में पहुँच कर मैं नर्सिंग रूम में पहुँचा व ड्यूटी नर्स को श्री संगम
लाल जी का बहिरंग चिकित्सा-पत्रक देते हुए एॅडमिशन फाइल बनाने व रोगी को
बैड एॅलाॅट करने के लिए कहा ।
मेरी बात सुनते ही ड्यूटी नर्स ने रोगी को बैड अलाॅट करने में
असमर्थता व्यक्त की। कारण, वाॅर्ड में प्रो. त्रिपाठी जी की
कार्डियो-रैस्पिरेटॅरि युनिट के सभी बैड्स पहले से ही भरे पड़े थे।
मेरे अनुरोध करने पर उसने रोगी को कायचिकित्सा विभाग के ही एक अन्य युनिट का एक खाली बैड अलाॅट कर दिया।
कुछ ही मिनटों में श्री संगम लाल जी अपने बैड पर थे। उनकी वृद्ध पत्नी नीचे फर्श पर एक छोटी सी दरी पर बैठ गईं।
मैं भी उनके बैड के पास पड़े एक स्टूल पर बैठ कर उनकी विस्तारपूर्वक रोगी-रोग वृत्त (History) लिखने लगा।
पेशे से दुकानदार श्री संगम लाल जी ने मुझे बताया कि वह पिछले लगभग 25-30 वर्ष से मधुमेह व हाई-ब्लॅड प्रैशर से पीड़ित थे।
इस दौरान वह कई अस्पतालों में व कई चिकित्सकों से एॅलोपैथिक व
आयुर्वैदिक ईलाज ले चुके थे। इसी सिलसिले में विगत में वह हमारे युनिट में
गुरुदेव प्रो. त्रिपाठी जी से भी चिकित्सा ले कर अच्छे हो चुके थे।
परन्तु, प्रायः सुधार होने पर वह ईलाज़ बन्द कर देते व तकलीफ़ होने पर दोबारा शुरु कर देते।
कुल मिला कर मधुमेह व हाई-ब्लॅड प्रैशर के लिए उनके द्वारा ली गई चिकित्सा अनियमित (Irregular) व अपूर्ण (Incomplete) थी।
उन्होेंने आगे बताया कि पिछले कुछ समय से वह अत्यधिक कमज़ोरी
महसूस कर रहे थे तथा थोड़ा सा भी श्रम करने पर उन्हें थकावट, सीने में
भारीपन व सांस फूलने जैसे कष्ट हो रहे थे।
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काॅरफ्लोज़ टैब्लेट में मौजूद पुष्करमूल + अर्जुन + ब्राह्मी हृदय की
रस-रक्त आपूर्ति (Coronary blood flow) को बढ़ाते हैं व इसे एक आदर्श
हृच्छूलहर (Anti-anginal) औषध-योग बनाते हैं।
फिर मैंने उनकी सामान्य दैहिक परीक्षा (G.P.E.) आरम्भ की -
● ब्लड-प्रैशर अब भी लगभग वही 160/100 mm Hg था;
● नाडी दुर्बल परन्तु गति तीव्र थी;
● श्वासगति सामान्य से तीव्र थी;
● ग्रीवा-सिराओं का फूला हुआ होना बता रहा था कि ग्रीवा-सिरा-दाब (JVP) बढ़ा हुआ था;
● देह के अधो-अंगों (Dependent parts) में शोफ ( Edema) था जिसे अंगुली से दबाने से गड्ढा (Pitting on pressure) पड़ रहा था;
● नखों में पाण्डुता (Pallor) झलक रही थी, त्वचा रूक्ष, काँतिहीन, व किञ्चित् श्याव (Mild cyanosis) थी।
● नाडी दुर्बल परन्तु गति तीव्र थी;
● श्वासगति सामान्य से तीव्र थी;
● ग्रीवा-सिराओं का फूला हुआ होना बता रहा था कि ग्रीवा-सिरा-दाब (JVP) बढ़ा हुआ था;
● देह के अधो-अंगों (Dependent parts) में शोफ ( Edema) था जिसे अंगुली से दबाने से गड्ढा (Pitting on pressure) पड़ रहा था;
● नखों में पाण्डुता (Pallor) झलक रही थी, त्वचा रूक्ष, काँतिहीन, व किञ्चित् श्याव (Mild cyanosis) थी।
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समव्यान टैब्लेट में मौजूद भूम्यामलकी समान-वायु (Thyroid & Liver), पुनर्नवा अपान-वायु (Kidneys & Intestines), जटामांसी उदान-वायु
(Hypothalamus & Pituitary), शंखपुष्पी प्राण-वायु (Higher brain
centres), व सर्पगन्धा व्यान-वायु (Vasomotor centre & Sympathetic
nervous system) को साम्यावस्था (harmony) में ला कर वृद्ध रक्तचाप (High
BP) को सामान्य बनाने का प्रयास करती है|
मगर उनका तापमान सामान्य था, त्वचा अथवा श्लैष्मिक कलाओं
(Mucuos membranes) में पीत-वर्णता (Yellowishness) नहीं थी, तथा न ही उनके
अंगुल्याग्र मुद्गरीकृत् (Clubbed) थे।
इसके पश्चात् मैंने सांस्थानिक परीक्षा (Systemic examination) की व देखा कि -
● उनकी श्वासगति बढ़ी होने के साथ-साथ श्वास-ध्वनि
(Respiratory sound) किञ्चित् कर्कश (Rough) थी, व फुफ्फुसाधारों (Bases of
lungs) में घुर्घुर-ध्वनि (Crepirations) भी सुनाई दे रही थी;
● उदर-परिधि (Abdominal girth) कुछ बढ़ी हुई थी; यकृत् स्पर्श-गम्य (Palpable), स्पर्शासह्य (Tender), मृदु (Soft), व श्लक्ष्ण (Smooth) था, व पार्श्वों में आकोठितं अशब्दम् (Dull percussion note on b/l flanks) था ;
● हृद्परीक्षा करने पर मैंने पाया कि जबकि प्रथम हृद्ध्वनि (S1) किञ्चित् दुर्बल व दबी हुई थी, द्वितीय हृद्ध्वनि (S2) प्रबल थी, तथा आकुञ्चन काल में एक मृदु मर्मर-ध्वनि (Soft systolic murmur) भी सुनाई दे रही थी।
तत्काल उनकी चिकित्सा आरम्भ करने के उद्देश्य से मैंने उनकी बाकी की परीक्षा मैंने बाद के लिए टाल दी।
मैंने पाया कि कफज प्रकृति वाले संगम लाल जी का सामान्य बल,
स्वर, अग्निबल इत्यादि भले ही मन्द थे, व उनकी निद्रा भी कम थी, परन्तु
उनका सत्व बल अत्यंत प्रबल था। इतना सब होने के बावजूद उनका साहस
प्रशंसनीय था।
केस हिस्टॅरि में तात्कालिक निदान (Provisional diagnosis) के
आगे मैंने लिखा - Type 2 Diabetes mellitus, Hypertension, Congestive
Cardiac Failure ।
अन्त में मैंने गुरुदेव प्रो. त्रिपाठी जी द्वारा निर्दिष्ट चिकित्सा लिखी -
R/
1. हृदयार्णव रस + जहरमोहरा + शृंग भस्म + नागार्जुनाभ्र (सभी उचित मात्रा में)
2. अर्जुन क्षीर पाक (उचित मात्रा में)
3. पुनर्नवाष्टक क्वाथ (उचित मात्रा में) ।
इसके साथ-साथ उन्होंने पहले से चली आ रही निम्न एॅलोपैथिक चिकित्सा को भी फिलहाल जारी रखने को कहा था, सो मैंने वह भी लिख डाली -
1. Lanoxin Tab
2. Lasix Tab
3. Pot Klor Liquid
4. Diabenese Tab
5. Adelphane Tab
2. Lasix Tab
3. Pot Klor Liquid
4. Diabenese Tab
5. Adelphane Tab
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कार्डीटोन्ज़ टैब्लेट में मौजूद वनपलाण्डु हृदय को डिजिटैलिस की तरह बल
देने का कार्य करता है। अर्जुन हृदय को बल देने के साथ-साथ हृदय को
रस-रक्त की आपूर्ति भी बढ़ाता है। अकीक, ज़हरमोहरा, व गण्डीर भी हृद्य
होने से कोई प्रकार से हृदय को बल देने व इसकी सुरक्षा करने का कार्य करते
हैं। इन सब कर्मों के आधार पर कार्डीटोन्ज़ टैब्लेट हृद्दौर्बल्य (Heart
failure) की चिकित्सा के लिए एक आदर्श औषध-योग बनता है।
फाइल पूरी करके मैंने उस पर अपने हस्ताक्षर किए व उसमें दिए
गए चिकित्सा आदेशों को लागू करने के लिए फाइल ड्यूटी नर्स के हवाले कर दी।
गुरुदेव प्रो. त्रिपाठी जी द्वारा निर्दिष्ट चिकित्सा के
सम्बन्ध में कई सारे प्रश्न मेरे मन में कुलबुला रहे थे, परन्तु उस समय
मैंने उन पर अधिक ध्यान उचित न समझा।
इसके बाद मैं नीचे भूतल पर ओ.पी.डी. में जाने के लिए तेज़
क़दमों से चलता हुआ वाॅर्ड से बाहर आ गया । अभी मैं सीढ़ियों की ओर जाने के
लिए दाहिने मुड़ा ही था कि सामने से सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर आते हुए मैंने कुछ
लोग देखे।
मैंने देखा गुरुदेव प्रो. त्रिपाठी वाॅर्ड की ओर तेज़ी से
बढ़े चले आ रहे थे व कायचिकित्सा विभाग के क्लीनिकल रजिस्ट्रार डाॅ.
एॅच.एॅम. चन्दोला जी गुरुदेव के साथ-साथ चलते हुए बड़ी गम्भीरता से उन्हें
किसी विषय की जानकारी दे रहे थे। उनके हाव-भाव से लगा रहा था कि विषय कुछ
गम्भीर ही था।
युनिट के बाकी लोग पीछे-पीछे चुपचाप चल रहे थे।
मैं वहीं एक तरफ़ खड़ा हो गया व मेरी ओर आते लोगों की प्रतीक्षा करने लगा।
ज्यों ही वह समूह मेरे पास से गुज़रा मैं धीरे से उनके साथ हो
लिया। मुझे लगा कि डाॅ. ओंकार नाथ जी द्विवेदी को छोड़ अन्य किसी का भी
ध्यान मुझ पर नहीं गया था।
हमारा समूह नर्सिंग रूम के पास, वार्ड के अन्तिम छोर पर रुका व वहाँ से शुरु होने वाले बैड नं. 17 से ग्रैंड राउंड शुरु हो गया।
हमारा समूह नर्सिंग रूम के पास, वार्ड के अन्तिम छोर पर रुका व वहाँ से शुरु होने वाले बैड नं. 17 से ग्रैंड राउंड शुरु हो गया।
नियम के अनुसार, रोगी का अटैंडिंग डाक्टर ही रोगी सम्बन्धित
सम्पूर्ण जानकारी अन्य सभी डाक्टर्स (विशेष कर सुप्रीम बाॅस) को देते थे।
क्योंकि उस समय यह उत्तरदायित्व मुझ से एक वर्ष वरिष्ठ
एॅम.डी. स्काॅलर डाॅ. टी.एॅन. सिंह जी ही निभा रहे थे, अतः वह ही एक-एक
करके सभी रोगियों के अपडेट्स गुरुदेव प्रो. त्रिपाठी जी व अन्यों को देने
लगे थे।
गुरुदेव हरेक रोगी के लिए आवश्यक विशिष्ट परीक्षाओं (Investigations) व चिकित्सा में परिवर्तन सम्बन्धी निर्देश दिए जा रहे थे।
डाॅ. टी.एॅन. सिंह जी निर्देशों को साथ-साथ रोगियों की फाइलों पर लिखे जा रहे थे।
हमारा काफ़िला तेज़ी से आगे बढ़े जा रहा था कि एक रोगी के पास पहुंचते ही उसका अपडेट देने के लिए डाॅ. चंदोला जी आगे आ गए।
वह एक अधेड़ उमर का डायबिटीज का रोगी था व डाॅ. चन्दोला जी का
रिसर्च पेशंट था। पूरी जानकारी लेने के बाद गुरुदेव ने डाॅ. चन्दोला जी को
उस रोगी की चिकित्सा से सम्बंधित कई सारे सुझाव दिए ।
काफ़िला फिर आगे बढ़ने लगा। वाॅर्ड के अन्तिम रोगी को देखने
के बाद गुरुदेव वापस मुड़ कर जाने ही लगे थे कि मैं लपक कर आगे बढ़ा व उनके
एकदम सामने आ गया व उनसे पास ही की दूसरी वाॅर्ड के बैड पर भर्ती श्री संगम
लाल जी को देखने का ज़ल्दी से आग्रह डाला।
गुरुदेव को, आज ही भर्ती श्री संगम लाल जी का केस स्मरण हो आया व उन्होंने मुझे उन के बैड तक चलने को कहा।
मैं तेज़ कदमों से श्री संगम लाल जी के बैड तक पहुँचा व झट से
उनकी फाइल ले कर गुरुदेव व अन्य सभी को पेशंट की हिस्टॅरि व परीक्षा में
मिली फाइंडिंग्ज़ का विस्तृत ब्यौरा देने लगा।
यह मेरी प्रथम बैड-साइड केस प्रैज़न्टेशन थी व मैं घबराहट के मारे कुछ तेज़-तेज़ बोल रहा था।
गुरुदेव बड़ी तल्लीनता से सब कुछ सुने जा रहे थे। इस बीच किसी
ने कुछ स्पष्टीकरण मांगने के लिए कुछ बोलना चाहा किन्तु गुरुदेव ने हाथ से
बोलने वाले को चुप रहने का संकेत दे दिया।
सब कुछ सुनने के बाद गुरुदेव ने रोगी की फाइल अपने हाथ में ली व उसके पन्ने उलट कर लिखी हुई जानकारी को उड़ती नज़र से पढ़ा।
फिर उन्होंने श्री संगम लाल जी से कुशल क्षेम पूछी, उन्हें
अच्छी से अच्छी चिकित्सा देने का आश्वासन दिया व अगले दिन उनके कुछ टैस्ट्स
कराने के मुझे कुछ निर्देश दिए, जिनमें रक्त की सामान्य जाँच के साथ-साथ
उरस् का एॅक्स-रे (X-rays chest) व ई.सी.जी. (ECG) भी थे।
फिर उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरी पीठ थपथपाई व कहा, 'वैल डन! हार्ट डिज़ीज़ में काफी अच्छी पकड़ है आपकी!'
उनके दिव्य हाथ के स्पर्श से मेरी देह का हरेक तन्तु झंकृत हो उठा था।
फिर वह घूमे, सबसे विदा ली व वाॅर्ड के मुख्य द्वार की ओर चल दिए ।
उनके पीछे अन्य सब लोग भी वाॅर्ड से निकल गए। सब के पीछे-पीछे मैं भी वाॅर्ड निकल आया।
मैं खुश था कि गुरुदेव को हार्ट फेलियर के पेशंट पर दी गई मेरी प्रैज़न्टेशन पसन्द आ गई थी।
सीढ़ियाँ उतरते समय जाने क्यों मुझे विश्वास हो चला था कि
मेरे थीसिस वर्क के लिए निश्चित् रूप से गुरुदेव मुझे हार्ट डिज़ीज़ ही
देंगे।
नीचे पार्किग में आ कर सब लोग अलग-अलग दिशाओं में चले गए - कुछ अपने घरों की ओर व कुछ छात्रावास की ओर।
और, मैंने सड़क के उस पार चिकित्सा विज्ञान संस्थान का रुख कर लिया ।
मैं जानता था, वहाँ सड़क के उस पार, चिकित्सा विज्ञान संस्थान
के दूसरे तल पर कैंटीन का स्वादिष्ट भोजन व उसके पश्चात् भूतल पर
पुस्तकालय में मोटी-मोटी पुस्तकें मेरी प्रतीक्षा कर रही थीं।
डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com
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