आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग: 14
'सफलता की चाबी - जुनून!'
हर बीतते दिन के साथ आयुर्वेद में पी.जी. करने की मेरी इच्छा दृढ़ से दृढ़तर होती चली गई । मैंने निश्चय कर लिया कि -
- मैं एॅम. डी. (आयुर्वेद) करुँगा;
- केवल कायचिकित्सा में करुँगा; तथा
- केवल बी.एॅच.यू. से ही करुँगा।
ज्यों-ज्यों मेरी इच्छा बलवती होती गई, मेरी मञ्ज़िल मुझे समीप से समीपतर आती प्रतीत होने लगी ।
अब प्रश्न था कायचिकित्सा में पी.जी. एॅन्ट्राॅन्स परीक्षा के लिए पूछे जाने वाले प्रश्नों के ट्रैंड की जानकारी प्राप्त करने का ।
इस कार्य के लिए मैं यदाकदा डाॅ. उमादत्त जी शर्मा से सहायता लेता रहा । डाॅ. उमादत्त जी शर्मा कृपापूर्वक हृदय से मेरी सहायता करते चले गए ।
एक अपराह्न मैंने डाॅ. वी. डी. एॅस. जम्वाल जी से भेंट कर उन्हें कुछ दिशानिर्देश देने का अनुरोध किया, जो कुछ समय पूर्व ही बी.एॅच.यू. से कायचिकित्सा में पी.जी. कर के लौटे थे व आयुर्वैदिक काॅलेज अस्पताल, जम्मू में फिज़िश्यन के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे थे ।
जम्मू के एक सुप्रसिद्ध वैद्यजी श्री परसराम (जम्वाल) जी के सुपुत्र, परम-मेधावी डाॅ. वी. डी. एॅस. जम्वाल जी (Former Director ISM, J&K Govt) आयुर्वेद व माडर्न मैडिसिन के गहन ज्ञाता व एक अनुभवी चिकित्सक हैं।
डाॅ. जम्वाल जी ने मुझे काफी सारे ऐसे दिशानिर्देश दिए जो पी.जी. प्रवेश परीक्षा की तैयारी में मुझे अत्यधिक सहायक हो रहे थे ।
उन्होंने बताया कि बी.एच.यू की पी.जी. प्रवेश परीक्षा में निम्न प्रकार के ऑब्जेक्टिव टाईप प्रश्न पूछे जा सकते हैं -
- औषध-योगों के मुख्य घटक;
- भस्मों के रंग;
- विषों के प्रमुख विषाक्त लक्षण;
- औषधियों की मात्रा;
- अमुक रोग की सम्प्राप्ति में सम्मिलित दोष अथवा दूष्य अथवा स्रोतस्;
- पंचकर्म से सम्बंधित अनेकों प्रश्न, इत्यादि;
- संहिता-ग्रन्थों व उनके रचयिताओं से जुड़ी जानकारी; इत्यादि ।
उन्होंने ज़ोर दे कर कहा कि बी.ए.एम.एस कोर्स के दौरान पढ़ाए गए विषयों में से कहीं से भी कुछ भी पूछा जा सकता है।
यही नहीं, माडर्न मैडिसिन में से भी लगभग 30-40 प्रतिशत प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
मैंने डाॅ. जम्वाल जी के निर्देशानुसार अपनी तैयारी आरम्भ कर दी ।
...
एक दोपहर मेरे परम-मित्र व मेरे सहपाठी डाॅ. कुलदीप राज कोहली (वर्तमान में, डायरैक्टर आयुर्वेद, महाराष्ट्र सरकार) मेरे घर पहुँचे । उनके हाथ में एक लिफ़ाफ़ा था जिसमें बी.एॅच.यू में प्रवेश परीक्षा के लिए एक आवेदन फॉर्म था, जो डाॅ. योगेन्द्र शर्मा जी ने बी.एॅच.यू. वाराणसी से मेरे लिए भेजा था।
डाॅ. कोहली ने ऐसा ही एक फॉर्म अपने लिए भी मंगवाया था। वह भी वहां के लिए तैयारी कर रहे थे ।
मेरी प्रसन्नता की सीमा न रही ।
डाॅ. कोहली थोड़ा समय मेरे पास बैठे, कुछ इधर-उधर की बातें हुईं, पी.जी. की तैयारी से सम्बंधित भी कुछ बातचीत हुई, व फिर वह चले गए।
डाॅ. कोहली के चले जाने के बाद मैंने फॉर्म को कई बार चूमा व उसे आदि से अंत तक पढ़ा। रह-रह कर मेरे मन में एक ही विचार आ रहा था - मुझे किसी भी हालत में पी.जी. करनी ही है।
मुझे लग रहा था कि मेरे लिए यह कोई साधारण फॉर्म न हो कर मेरे सपनों को साकार करने के लिए ईश्वर की ओर से भेजा हुआ एक 'वरदान' है ।
मन ही मन मैं डाॅ. योगेन्द्र शर्मा जी को कोटि-कोटि धन्यवाद दिए जा रहा था, जिन्होंने मेरे एक बार कहने मात्र से ही मुझे यह फॉर्म भेजा दिया था।
डाॅ. योगेन्द्र शर्मा जी का यह उपकार मैं आजीवन याद रखने वाला हूँ । अपने इस उपकार की वजह से उन्होंने मेरे हृदय में वह स्थान प्राप्त कर लिया है, जो सम्भवतः किसी अन्य को प्राप्त नहीँ हो सकता।
इसके बाद मेरी तैयारी की गति व गम्भीरता कई गुना बढ़ गई । दिन रात मुझे दूसरा और कुछ भी न सूझता। मैं या तो अध्ययन में लीन रहता, या फिर पढ़े हुए विषयों पर चिन्तन मनन करने में।
इससे पूर्व किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस सीमा तक ज्वलंत इच्छा मैंने अपने भीतर देखी न थी।
...
बरसों बाद...
सन् 2000 के आरम्भिक वर्षों में, सफलता के रहस्यों (secrets of success) को उद्घाटित करने के अपने अनुसंधान में मैंने पाया कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिए 'इच्छा' का निम्न 5 अवस्थाओं में से हो कर गुजरना आवश्यक होता है -
1. WISH (इच्छा)
जब हम चाहते हैं कि 'काश! ऐसा हो जाए';
2. HOPE (आशा)
जब हम में उम्मीद जगने लगती है कि 'शायद, ऐसा हो जाए';
3. DESIRE (अभिलाषा)
जब हमें लगने लगता है कि 'हाँ, ऐसा होना सम्भव है';
4. DETERMINATION (निश्चय)
जब हम अपना इरादा मज़बूत कर लेते हैं कि 'हाँ, मैं ऐसा कर के ही रहूँगा'; तथा
5. OBSESSION (जुनून)
जब अपना ध्येय प्राप्त करने के लिए हम में जुनून पैदा हो जाता है, हम व हमारा ध्येय एकरूप हो जाते हैं, व हमें अपने ध्येय के सिवा अन्य कुछ सूझता ही नहीँ, तथा हम अपने आप से कह उठते हैं, 'ध्येय, ध्येय, एवं ध्येय!'
मैंने देखा कि संसार में सफलतम व्यक्तियों को सफलता तभी मिली थी जब ऊनकी इच्छा ने जुनून का रूप ले लिया था।
...
मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीँ कि वर्ष 1981 के उन आरम्भिक महीनों में मेरे भीतर आयुर्वेद में एम.डी. कर के इस अद्भुत जीवन विज्ञान व मानवता के लिए कुछ विशिष्ट करने का एक अभूतपूर्व 'जुनून' पैदा हो गया था।
डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com
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