Monday, November 28, 2016

आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत व प्रयोग - 39

हार्ट फेलियर (Heart failure) - 1


अगली प्रातः 7:30 बजे मैं कायचिकित्सा वार्ड में पहुँचा। मेरे संग मेरे सहपाठी डाॅ. ओंकारनाथ द्विवेदी भी थे।
अतर्रा-बान्दा (उत्तर प्रदेश) निवासी डाॅ. द्विवेदी एक परम सज्जन, सरल, व सन्तुष्ट व्यक्तित्व के स्वामी थे। कुछ ही दिनों के उनके साहचर्य से मुझे यह आभास हो गया था आगामी दो वर्षों का हमारा साथ अत्यन्त सुखद व स्नेहपूर्ण रहने वाला है।


(अपने पाठकों को बता दूँ कि आज 2016 में 32 बरस के बाद भी हम गहरे मित्र हैं व एक दूसरे को पहले से भी अधिक स्नेह करते हैं। यह बात जुदा है कि काफी समय से हम लोगों का मिलना नहीं हो पाया है।)

पिछले दिन जनरल ओ.पी.डी. का दिन होने से, बहुत सारे नए रोगी भर्ती किए गए थे, अतः वाॅर्ड रोगियों से खचाखच भरा था। 

अधिक नए रोगियों का अर्थ था, जाँच के लिए अधिक रोगियों का ब्लड निकालना, फिर निर्दिष्ट परीक्षाओं के लिए अधिक रिक्वीज़िशन फ़ाॅर्म्स का भरना, तथा और भी कई छोटे-मोटे काम करते हुए ब्लड के सैम्पल्ज़ को नर्सिंग स्टाफ़ को हैंडओवर करना।

इसके बाद शुरु हुआ रुटीन का मार्निंग राउंड । डाॅ. ओंकारनाथ द्विवेदी व मैंने सभी भर्ती रोगियों को पहले से दी जा रही चिकित्सा का संक्षिप्त जायज़ा लिया, व उनमें यथावश्यक परिवर्तन किए।

इसके बाद हम दोनों तेज़ कदमों से भूतल पर बहिरंग विभाग के कार्डियो-रैस्पीरटॅरि स्पैशल्टी ओ.पी.डी., कमरा नम्बर 22 में पहुँचे। 

रोगियों से खचाखच भरे उस स्पैशल्टी ओ.पी.डी. में डाॅ. बी.एॅन. उपाध्याय जी आने वाले रोगियों की जाँच कर रहे थे। वह कायचिकित्सा विभाग में प्रवक्ता व कार्डियो-रैस्पिरेटॅरि यूनिट में वरिष्ठता में द्वितीय क्रम के चिकित्सक थे।
उनके सामने की कुर्सी में, एॅम.डी. आयुर्वेद तृतीय वर्ष के स्कॉलर, डाॅ. टी.एॅन. सिंह रोगियों की हिस्टॅरि लेकर, व उसे रोगियों के बहिरंग चिकित्सा-पत्रकों (OPD Slips) पर लिखते हुए, डाॅ. उपाध्याय जी को सहयोग कर रहे थे।

डाॅ. उपाध्याय जी साधारण रोगियों को चिकित्सा लिख बाहर के कमरे से ही निपटाए जा रहे थे, जबकि गम्भीर रूप से बीमार रोगियों को भीतर के कमरे में बैठे कायचिकित्सा विभाग में प्रोफेसर व कार्डियो-रैस्पिरेटॅरि यूनिट के अध्यक्ष माननीय प्रो. एॅस. एॅन. त्रिपाठी जी के पास भेजे रहे थे।

मैंने डाॅ. उपाध्याय जी व डाॅ. सिंह, दोनों को हल्की सी मुस्कान के साथ धीरे से नमस्कार किया ।
डाॅ. उपाध्याय जी किसी रोगी का चिकित्सा-पत्रक लिख रहे थे। उन्होंने अपनी गर्दन ज़रा सी उठाई व हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाते हुए मेरे अभिवादन का उत्तर दिया व उनके बाईं ओर पड़ी एक खाली कुर्सी में बैठने का मुझे संकेत किया।

मैं धीरे से उस कुर्सी में बैठ गया। मेरे सहपाठी डाॅ. द्विवेदी जी एक अन्य खाली कुर्सी में बैठ गए।
डाॅ. टी. एॅन. सिंह लगभग साठ-पैंसठ वर्ष के एक रोगी से हिस्टॅरि ले रहे थे।
अपना काम पूरा करके डाॅ. सिंह ने टेबल पर पड़ा बी.पी. एॅपरेटस् मेरी ओर सरकाते हुए, उस रोगी का रक्तचाप (Blood pressure) देखने का मुझे संकेत किया।

स्टील के घूमने वाले स्टूल पर बैठै उस रोगी का धीरे से बाजू पकड़ कर, मैंने हल्का सा उसे अपनी ओर घुमाया व उसका ब्लड प्रैशर देखने लगा।
ब्लड-प्रैशर अधिक था; शायद 160/100 mm Hg ।


SAMVYAN Tablet

आदर्श उच्च-रक्तचाप शामक औषध-योग, जो पांचों वायुओं का शमन करते हुए विषम व्यान (उच्च-रक्तचाप) को सम करती है|

मैंने देखा, उस रोगी का चेहरा कुछ फूला हुआ था, व उसे सांस लेने में कुछ कठिनाई हो रही थी।
मैंने ब्लड-प्रैशर की रीडिंग डाॅ. सिंह को बताई।
डाॅ. सिंह ने चिकित्सा-पत्रक पर ब्लॅड प्रैशर की रीडिंग लिखी, व फिर उसे मेज़ के दूसरी ओर बैठे, डाॅ. उपाध्याय जी की ओर सरका दिया।

डाॅ. उपाध्याय जी एक अन्य रोगी का चिकित्सा-पत्रक लिख रहे थे।
उस रोगी से मुक्त हो कर उन्होंने उच्च-रक्तचाप के उस रोगी का चिकित्सा-पत्रक उठाया व कुछ देर ग़ौर से पढ़ने के बाद डाॅ. सिंह के साथ कुछ विचार-विमर्श किया। 

फिर उन्होंने डाॅ. सिंह को उस रोगी के विषय में भीतर बैठे प्रो. त्रिपाठी जी से चर्चा करने व उनसे उसकी चिकित्सा के लिए मार्गदर्शन लेने के लिए कहा।
डाॅ. टी. एॅन. सिंह उठे व भीतर के कमरे में चले गए । उनके पीछे-पीछे, धीरे-धीरे वह रोगी भी भीतर के कमरे में चला गया।

कुछ देर बाद डाॅ. सिंह वापस बाहरी कमरे में लौट आए व मुझे भीतर के कमरे में जा कर गुरुदेव प्रो. त्रिपाठी जी से मिलने के लिए कहा।
बिना कुछ समझे मैं झटके से उठा व तेज़ गति से भीतर के कमरे की ओर लपका।
मैंने गुरुदेव के पाँव छू कर प्रणाम किया व चुपचाप उनके समीप खड़ा हो गया।

मैंने देखा गुरुदेव उस रोगी के चिकित्सा-पत्रक पर सबसे नीचे अपनी महीन लिखाई में कुछ लिख रहे थे।
चिकित्सा-पत्रक पर लिख लेने के बाद, गुरुदेव ने मेरी ओर देखते हुए कहा, 'डाॅ. सुनील जी, यह संगम लाल जी हैं, हमारे पुराने पेशंट। यह सागर, मध्य प्रदेश से हैं व अपने ईलाज के लिए यहाँ पहले भी कई बार आ चुके हैं।

 इन्हें डायबिटीज और हाइपरटैंशन हैं। मगर इस बार लगता है इन्हें हार्ट फेलियर (Heart failure) भी हो गया है; इसीलिए इन्हें एॅडमिट कर दिया है। ज़रा वाॅर्ड में जा कर इनका ट्रीटमंट शुरु करवा देते।'

CARDITONZ Tablet
दुर्बल हृदय को बल देने के लिए आदर्श औषध-योग, जो हृदय की आकुञ्चन शक्ति (Force of contraction) को बढ़ाता है व हार्ट फेलियर की चिकित्सा में वाँछित परिणाम देता है|

'जी सर!' कहते हुए मैंने गुरुदेव के हाथ से संगम लाल जी चिकित्सा-पत्रक लिया, व उन्हें अपने साथ कमरे से बाहर आने का संकेत किया।

बाहरी कमरे में आ कर मैंने गुरुदेव की कही बातें डाॅ. उपाध्याय जी को बताईं व उनकी भी स्वीकृति पा कर कमरे से बाहर बरामदे में निकल आया ।
मेरे पीछे-पीछे श्री संगम लाल जी व उनके पीछे उनकी पत्नी भी हो लिए।

क्रमशः


डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com
Website : www.drvasishths.com

No comments:

Post a Comment