Sunday, December 25, 2016

औषधियाँ सही मात्रा में दें

Prescribe the medicines in the right dose




प्रिय युवा आयुर्वेद चिकित्सक!  

यदि आप चाहते हैं कि आपके द्वारा दी जाने वाली चिकित्सा इच्छित परिणाम (Results) दे, तो औषधियाँ सही मात्रा में दें।

मेरा यह व्यक्तिगत अनुभव है कि अनेकों बार चिकित्सक ने रोग का निदान तो सही किया होता है, तथा उस रोग की चिकित्सा के लिए सही औषधियों का चुनाव भी किया होता है, किन्तु इस के बावजूद भी चिकित्सा से अपेक्षित सफलता नहीं मिलती।

कारण, रोग की चिकित्सा के लिए दी जाने वाली औषधियों की मात्रा उनकी आवश्यक चिकित्सकीय मात्रा (Required therapeutic dose) से कहीं कम होती है।

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क्यों दी जाती है औषधियों की कम मात्रा ?

चार मुख्य कारणों से औषधियाँ आवश्यकता से कम चिकित्सकीय मात्रा (Therapeutic dose) में दी जाती हैं - 

I. चिकित्सक (वैद्य) से जुड़े कारण
II. रोगी से जुड़े कारण
III. औषध से जुड़े कारण
IV. उपस्थाता से जुड़े कारण

आईए इन कारणों को ज़रा विस्तार से देखते हैं -

I. चिकित्सक से जुड़े कारण (Factors related with the physician):

कई बार औषधियों को प्रभावी मात्रा (Effective dose) से कम देने के लिए चिकित्सक स्वयं ही जिम्मेदार होता है। जैसे -

1. कभी-कभी, चिकित्सक को प्रयोग की जाने वाली औषधियों की प्रभावी मात्रा (Effective dose) का ज्ञान ही नहीं होता। ऐसे में चिकित्सक स्वयं ही औषधियों को प्रभावी मात्रा (Effective dose) से कम दे देता है।

यह ध्यान देने योग्य है कि अनेकों स्थानों पर शास्त्रकार औषध की प्रभावी मात्रा (Effective dose) व सेवन-समय (Frequency of administration) बताने के बजाय बस इतना भर लिख देते हैं कि - वैद्य युक्तिपूर्वक प्रयोग करे । 

क्योंकि युक्ति औषधियों का वारंवार व्यवहार करने पर ही आती है, ऐसे में चिकित्सक को व्यावहारिक अनुभव (Practical experience) की कमी होने पर ऐसा हो सकता है ।

2. ईलाज़ की कीमत कम करने के  लिए भी चिकित्सक (विशेष कर कीमती) औषधियों को आवश्यकता से कम मात्रा में दे सकता है। ऐसा निम्न परिस्थितियों में सम्भव है - 

  • रोगी ग़रीब है व औषधियों को पूरी मात्रा में ख़रीदने में असमर्थ है;
  • अपने पास से औषधियाँ देने वाले _कुछेक_ चिकित्सक अपना लाभांश (Profit margin) बढ़ाने की दृष्टि से अधिक मंहगी औषधियों को आवश्यकता से कम मात्रा में दे सकते हैं।
  •  यदि रोगी कई रोगों से पीड़ित है व चिकित्सक उन सभी रोगों की एक साथ चिकित्सा शुरु कर देता है, तो ऐसे में सभी औषधियों की कुल मात्रा (Total quantity) अत्यधिक हो जाती है, जिसे सेवन करना रोगी के लिए कठिन हो जाता है। साथ ही, इतनी अधिक औषधियों के एक साथ सेवन करने पर उनमें कई प्रकार की अवाँछित पारस्परिक-क्रियाएँ (Undesirable drug Interactions) भी सम्भव हैं। ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए चिकित्सक सभी औषधियों की मात्रा तो कम कर देता है, परन्तु इससे औषधियों से वाँछित परिणाम नहीं मिलते।

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II. रोगी से जुड़े भावों के कारण (Factors related with the patient):

कई बार औषधियों को प्रभावी मात्रा (Effective dose) से कम सेवन करने के लिए रोगी जिम्मेदार होता है। जैसे -

1. रोगी निर्दिष्ट औषध मात्रा (Prescribed drug dose) का अनुसरण नहीं करता है। ऐसा निम्न परिस्थितियों में सम्भव है - 

  • कुछ ग़रीब रोगी धन के अभाव में चिकित्सा के लिए पूरी औषधियाँ नहीं खरीद पाते।
  • कुछ व्यस्त रोगियों के पास औषध लेने का समय ही नहीं (Non-availability of time) होता है। यह समस्या तब और अधिक बढ़ जाती है जब चिकित्सक उन्हें कई प्रकार की औषधियाँ (विशेष कर काम के समय) सेवन करने का निर्देश दे देता है। 
  • कुछ रोगियों की अपने स्वास्थ्य में उचित रुचि के न होने (Lack of interest of the patient in their health) से भी वे औषधियाँ पूरी मात्रा में नहीं लेते। ऐसा निम्न परिस्थितियों में सम्भव है- 
                     - रोगी किन्हीं अन्य अधिक महत्वपूर्ण कार्यों में व्यस्त है;
                     - रोगी स्वस्थ होने की इच्छा नहीं रखता व जीने की ऐषणा छोड़ चुका है।
  • हो सकता है कि रोगी को इस बात का पूरा पता ही न हो कि औषधियाँ कितनी मात्रा में व कब-कब लेनी हैं। ऐसा निम्न कारणों से सम्भव है -
                - चिकित्सक ने रोगी को औषधियों की मात्रा व लेने का समय उस ढंग से बताया ही नहीं                       जिस ढंग से रोगी अच्छी तरह से समझ पाता;

                - रोगी की मानसिक अवस्था उपरोक्त निर्देश पूरी तरह से समझ सकने जैसी नहीं हो। ऐसा                     प्रायः तब होता है जब रोगी मानसिक रूप से अविकसित हो, अस्वस्थ हो, नशे में हो,                         अत्यधिक चिंतित हो, व अशिक्षित हो।
  • कभी-कभी रोगी जानबूझ कर औषधियाँ पूरी मात्रा में नहीं लेना चाहता। ऐसा प्रायः तब होता है जब रोगी मानता है कि निर्दिष्ट मात्रा में लेने पर औषधि से मुझे कुप्रभाव (Adverse effects) हो सकते हैं।

2. अन्य रोगों की उपस्थिति के कारण चिकित्सक औषधियों को आवश्यक मात्रा में नहीं दे पाता -

  • आमाशय-शोथ (Gastritis) होने पर औषधियों को प्रभावी मात्रा में देने पर आमाशयगत कष्ट बढ़ सकने की सम्भावना से औषधियों को कम मात्रा में लेने को कहा जा सकता है;
  • धात्वग्नियों के मन्द होने पर (e.g., liver disease) औषधियों के सम्यक् पाचन/विघटन (Degradation) में व्यवधान आता है। ऐसे में औषधियों को आवश्यकता से कम मात्रा में देना अभीष्ट होता है। परन्तु इससे उनके अपेक्षित प्रभावों में कमी आने से रोग की चिकित्सा सम्यक् रूप से नहीं हो पाती।
  • मूत्र-मार्ग से निष्कासित होने वाली औषधियों की मात्रा को वृक्क-अक्षमता (Renal insufficiency / failure) की स्थिति में कम करना पड़ता है। 


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III. औषधियों से जुड़े कारण (Factors related with the drugs):

औषधियों की अनुपलब्धता (Drug unavailability) व औषध-निर्माण (Drug manufacturing) से जुड़े कई भाव भी कई बार औषधियों को प्रभावी मात्रा (Effective dose) से कम देने के लिए जिम्मेदार होते हैं। जैसे -

1. औषधियों की अनुपलब्धता (Non-availability of the drugs) - औषधियों की आवश्यकता के अनुसार उपलब्धता न होने से कभी-कभी औषधियाँ पूरी मात्रा में लेना सम्भव नहीं हो पाता।

2. कुछेक औषध निर्माता कम्पनियाँ (रोगियों, चिकित्सकों, आयुर्वेद, व कानून से धोखा करते हुए तथा अपना लाभांश बढ़ाने के लिए, विशेषकर कीमती) औषधियों के घटकों को आवश्यकता से कम मात्रा में डालने जैसा घोर अपराध करती हैं। इसके परिणामस्वरूप रोगी को आवश्यकता से कम औषध-मात्रा मिलती है, जो अपेक्षित प्रभाव नहीं देती। ऐसे में, रोगी अपेक्षित स्वास्थ्य लाभ नहीं कर पाते, अथवा दीर्घ काल तक रोग से पीड़ित रहते हैं, अथवा कई बार तो असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। 

3. कुछेक औषध निर्माता कम्पनियाँ निर्धारित मानकों (Prescribed standards) व विधियों का अनुसरण नहीं करते। ऐसे में, औषधियों में रहने वाले कार्यकारी तत्व (Active principles) नष्ट हो जाते हैं। फिर, भले ही ऐसी स्तरहीन औषधियाँ पूरी मात्रा में ले ली जाएँ, तो भी वह पूरा प्रभाव नहीं दे पातीं।


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IV. उपस्थाता से जुड़े कारण (Factors related with the attendant):

कई बार औषधियों को प्रभावी मात्रा (Effective dose) से कम सेवन करने के लिए उपस्थाता (Attendant) जिम्मेदार होता है। जैसे -

1. उपस्थाता के पास आवश्यक समय की कमी (Non-availability of time) होने से वह रोगी को सम्यक् रीति से व उचित मात्रा में औषध सेवन नहीं करा पाता।

2. उपस्थाता की रोगी व उसके स्वास्थ्य में रुचि न होने (Lack of interest of the attendant in the patient and their health) से भी ऐसा सम्भव है।

3. हो सकता है कि उपस्थाता (Attendant) को इस बात का पूरा पता ही न हो कि औषधियाँ कितनी मात्रा में व कब-कब देनी हैं। ऐसा निम्न कारणों से सम्भव है -

  • चिकित्सक ने उपस्थाता को औषधियों की मात्रा व देने का समय उस ढंग से बताया ही नहीं जिस ढंग से उपस्थाता अच्छी तरह से समझ पाता;
  • उपस्थाता की मानसिक अवस्था उपरोक्त निर्देश पूरी तरह से समझ सकने जैसी नहीं हो। ऐसा प्रायः तब होता है जब उपस्थाता मानसिक रूप से अविकसित हो, अस्वस्थ हो, नशे में हो, अत्यधिक चिंतित हो, अशिक्षित हो;
  • उपस्थाता जानबूझ कर रोगी को औषधियाँ पूरी मात्रा में नहीं देना चाहता। ऐसा निम्न परिस्थितियों में सम्भव है - 
            - उपस्थाता मानता है कि निर्दिष्ट मात्रा में देने पर औषधि से रोगी का किसी प्रकार से अहित हो                 सकता है;
            - कपट के कारण उपस्थाता नहीं चाहता कि रोगी स्वस्थ हो।
 

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क्र्मशः



डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com 
Website : www.drvasishths.com
 

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