Monday, February 6, 2017

शोथ-प्रधान रोगों की सम्प्राप्ति-विघात पर आधारित चिकित्सा

Pathologic Basis of the Management of

INFLAMMATORY DUSEASES

(शोथ-प्रधान रोगों की सम्प्राप्ति-विघात पर आधारित चिकित्सा)

 
प्रिय युवा चिकित्सक!

यह अपडेट आपके लिए खास तौर पर तैयार किया गया है। इससे आपको शोथ-प्रधान रोगों (Inflammatory diseases) की चिकित्सा में औषधियों के चुनाव के लिए दिशा मिलेगी। अन्यथा औषधियों के विशाल वन में खो कर आजीवन भटकते रहना पड़ेगा।

आप इस अपडेट को बार-बार पढ़ कर इसमें पारंगत हो जाएँ। शंका होने पर अपने आदरणीय गुरुजनों से अथवा हम से सम्पर्क करें।

भवदीय
डाॅ.वसिष्ठ
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शरीर के किसी भी अंग में चोट (आघात / Trauma) लगने पर, अथवा इसमें संक्रमण (Infection) होने पर वह अंग सूज (Swell) जाता है, जिसे हम शोथ या व्रण-शोथ (Inflammation) कहते हैं।

क्यों होती है शोथ?
असल में शोथ (Inflammation) शरीर की सुरक्षा के लिए प्रकृति द्वारा विकसित (Evolved) एक सुरक्षात्मक प्रक्रिया (Defensive mechanism) है।

इस प्रक्रिया के अंतर्गत सबसे पहले शरीर का वात-दोष (Neuro-endocrine system) क्रियाशील (Activate) होता है, जो कई प्रकार की छोटी-बड़ी प्रक्रियाओं के द्वारा प्रभावित स्थान (Affected site) में ढेर सारा रस-रक्त धमनियों में एकत्रित (Hyperemia) करता है।

फिर, वहाँ धमनियों में एकत्रित रस-रक्त (Blood) में से अनेकों प्रकार के कफ-वर्गीय रक्षक-द्रव्य (Immune cells / substances) तथा पित्त-वर्गीय रक्षक-द्रव्य (Enzymes substances) धमनी-गत सूक्ष्म-स्रोतसों (Capillaries) से रिस कर (Exudation) कर स्थानिक धातुओं (Interstitial spaces) में एकत्रित होते हैं।

इसके बाद, वे कफ-वर्गीय रक्षक-द्रव्य (Immune cells / substances) तथा पित्त-वर्गीय रक्षक-द्रव्य (Enzymes substances) कई प्रकार की जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं (Biochemical responses) के द्वारा न केवल वहाँ मौजूद सूक्ष्मजीवों (Micro-organisms) का नाश होता है, बल्कि विकृत/नष्ट धातुओं का सामान्यीकरण (Normalization) व पुनर्भवन (Repair) भी होता है।

यही कारण है कि शरीर में होने वाले अधिकांश रोगों में थोड़ा-बहुत शोथ रहता ही है, जिसकी चिकित्सा की ज़रूरत नहीं होती।

परन्तु, जब यह सुरक्षात्मक प्रक्रिया (Defensive mechanism) खुद ही शरीर को आवश्यकता से अधिक कष्ट देने लगे, अथवा शरीर के अस्तित्व के लिए ख़तरा बनने लगे तो इसकी चिकित्सा आवश्यक हो जाती है।

तब हम शोथहर औषधियों (Anti-inflammatory drugs) का प्रयोग करते हुए शोथ-प्रधान रोगों की चिकित्सा करते हैं।

 कैसे कार्य करती हैं शोथहर औषधियाँ?

शोथहर औषधियाँ (Anti-inflammatory drugs) को कार्य-विधि (Mode of action) के आधार पर मुख्य रूप से 3 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - 

I. उष्ण-वीर्य शोथहर औषधियाँ (NSAIDS);
II. शीत-वीर्य शोथहर औषधियाँ (Phyto-steroids); तथा
III. सम्प्राप्ति-विघातज शोथहर औषधियाँ (Disease-modifying drugs)।

I. उष्ण-वीर्य शोथहर औषधियाँ (NSAIDS):

आयुर्वेद में वर्णित शोथहर औषधियों का एक बड़ा वर्ग उष्ण-वीर्य शोथहर औषधियाँ (Non-steroidsl Anti-inflammatory Drugs) के अन्तर्गत आता है। जैसे - 

  • शल्लकी (Boswellia serrata)
  • एरण्ड (Ricinus communis)
 
LOSWEL Tablet
Anti-inflammatory


  • गुग्गुलु (Commiphora mukul)
  • रास्ना (Vanda roxburghii)
  • दशमूल (Decaroots)
  • जातीफल (Myristica fragrans)
 
DOLID Tablet
Analgesic

  • निर्गुण्डी (Vitex negundo)
  • शिग्रु (Moringa pterygosperma)
  • चित्रक (Plumbago zeylanica)
  • हरिद्रा (Curcuma longa) 
  • रक्त-मरिच (Capsicum annum / frutescens)

LOSWEL Oil
Topical Analgesic, muscle relaxant


ये औषधियाँ मुख्य रूप से उष्ण, तीक्ष्ण, कटु, तिक्त, अग्निवर्धक, दीपन, पाचन, दाहकारक होती हैं। 

इनकी अच्छी बात यह है कि ये औषधियाँ वेदनाहर (Analgesic) व रक्त-स्कन्दनहर (Anticoagulant) भी रहती हैं, जिससे कि इनका उपयोग वेदना-प्रधान रोगों (Painful diseases) व हृद्धमनीरोग (CAD) में भी श्रेयस्कर रहता है। 

मगर इनकी खराब बात यह है कि इनके अत्यधिक मात्रा में व चिरकाल तक उपयोग से आमाशय-क्षोभ/शोथ (Gastric irritation / inflammation), रक्तपित्त (Anticoagulation), व वृक्क-वस्ति शोथ/ (Urinary irritation / inflammation) की सम्भावना होने से इनका उपयोग प्रायः भोजन के बाद तथा कम अवधि तक करना चाहिए । साथ ही गर्भावस्था में भी इन औषधियों का सावधानीपूर्वक ही उपयोग करना चाहिए या फिर नहीं करना चाहिए ।

यदि दीर्घकालिक उपयोग आवश्यक हो तो बीच-बीच में हफ़्ता-दस दिन तक बन्द करके पुनः उपयोग करना चाहिए । साथ ही कुछ शीतल पदार्थों का सेवन भी कराना चाहिए ।

II. शीत-वीर्य / अनुष्णशीत-वीर्य / ईषत्-उष्ण-वीर्य शोथहर औषधियाँ (Drugs having phyto-steroids):

आयुर्वेद में वर्णित शोथहर औषधियों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो शोथहर तो हैं, मगर जो उष्ण-वीर्य न हो कर शीत-वीर्य या अनुष्णशीत-वीर्य या ईषत्-उष्ण-वीर्य ही होती हैं। ये औषधियाँ इनमें मौजूद फ़ाय्टो-स्टिरायड्स (Phtyo-steroids) अथवा तत्सदृश तत्वों के आधार पर कार्य करती हैं। जैसे - 

  • मधुयष्टी (Glycyrrhiza glabra)

LOCID Tablet
Antacid
 
  • शतावरी (Asparagus racemosus)
  • उशीर (Vetiveria zizanoides)
  • चन्दन (Santalum album)
  • वासा (Adhatoda vasica)
  • कमल (Nelumbium speciosum)
  • गोक्षुर (Tribulus terrestris)

ये औषधियाँ मुख्य रूप से शीत, मधुर, व अग्निशामक होती हैं। इनके अत्यधिक मात्रा में व चिरकाल तक उपयोग से अग्निमांद्य व शरीर में उदक-संचय (Water retention) की सम्भावना होने से इनका उपयोग कम अवधि तक करना चाहिए । यदि दीर्घकालिक उपयोग आवश्यक हो तो बीच-बीच में हफ़्ता-दस दिन तक बन्द करके पुनः उपयोग करना चाहिए । साथ ही कुछ उष्ण पदार्थों का सेवन भी कराना चाहिए ।  गोक्षुर में मूत्रल क्रिया होने से लम्बे समय तक उपयोग से तृष्णा ( Dehydration) व दौर्बल्य (Weakness) हो सकती है। अतः इसके साथ जल, फल-स्वरस, यूष इत्यादि का सेवन अनिवार्य रहता है।  

III. सम्प्राप्ति-विघातज  (Disease-modifying) शोथहर औषधियाँ (Anti-inflammatory drugs):

आयुर्वेद में वर्णित कई औषधियाँ सम्प्राप्ति-विघात करके शोथ-प्रधान रोगों में लाभ देती हैं, जिन्हें सम्प्राप्ति-विघातज (Disease-modifying) शोथहर औषधियों (Anti-inflammatory drugs) के वर्ग में रखा जा सकता है। जैसे - 

  • स्वर्ण (Gold) - यह आमवातहर (Anti-rheumatic) है;
  • भल्लातक (Semecarpus anacardium) - यह आमदोषहर (Immunomodulator) व रसायन (Antioxidant) है;

ANTIVIR Tablet
Anti-viral
 
  • गुडूची (Tinospora cordifolia) - यह वातरक्तहर (Uricosuric), आमदोषहर (Immunomodulator) व रसायन (Antioxidant) है;
  • अश्वगन्धा (Withania somnifera) - यह आमदोषहर (Immunomodulator) व रसायन (Antioxidant) है;
 
CARTOGEN Tablet
Anti-degenerative


  • कटुकी (Picrorrhiza kurroa) - यह आमदोषहर (Immunomodulator) है;
  • तुलसी (Ocimum sanctum) - यह आमदोषहर (Immunomodulator) है;
  • यशद (Zinc) - यह आमदोषहर (Immunomodulator) व रसायन (Antioxidant) है;
  • निम्ब (Azadirachta indica) - यह आमदोषहर (Immunomodulator) व ज्वरहर (Anti-infective) है;
  • शटी (Hedychium spicatum) - यह आमदोषहर (Immunomodulator) व असात्म्यहर (Anti-allergic) है
 
LERGEX Tablet
Anti-allergic


ये औषधियाँ अलग-अलग रोगों की सम्प्राप्ति-विघात करके शोथ-प्रधान रोगों में लाभ देती हैं। अतः इनका उपयोग रोग सम्प्राप्ति के आधार पर ही किया जाना उचित है । 

इनका नकारात्मक पहलू यह है कि इनका प्रभाव प्रयोग आरम्भ करने के कुछ समय  के बाद ही दिखाई देता है, ऐसे में कई रोगी असन्तुष्ट हो कर चिकित्सा छोड़ सकते हैं। इसलिए इन औषधियों के साथ-साथ उपरोक्त दोनों वर्गों में से उपयुक्त औषधियों का युक्तिपूर्वक उपयोग रोगी व चिकित्सक दोनों को लाभ देता है। 

(नोट: वरिष्ठ चिकित्सकों को यह अपडेट भेजने का उद्देश्य इससे सम्बन्धित सुझाव प्राप्त करना मात्र है)।
 
 
डाॅ.वसिष्ठ
Dr. Sunil Vasishth
M. + 91-9419205439
Email : drvasishthsunil@gmail.com 

Website : www.drvasishths.com
 

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